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यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 का सुदृढ़ीकरण


 

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 का सुदृढ़ीकरण

मेन्स के लिये:

भारत में बाल यौन शोषण और उससे संबंधित चुनौतियों से निपटने हेतु उठाए गए कदम।

 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि नाबालिगों से संबंधित यौन सामग्री देखना या रखना, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत अवैध है।चाहे ऐसी सामग्री को आगे साझा या प्रेषित किया जाए या नहीं, यह POCSO अधिनियम, 2012 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।इसने मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय को पलट दिया, जिसमें यह निर्धारित किया गया था कि बाल पोर्नोग्राफी को निजी तौर पर देखना (आगे प्रेषित करने के बिना) अपराध नहीं माना जाएगा।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

शब्दावली को पुनर्परिभाषित करना: सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने केंद्र सरकार से "बाल पोर्नोग्राफी" शब्द को "बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री" (CSEAM) से बदलने का आग्रह किया है।

यह परिवर्तन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि "पोर्नोग्राफी" शब्द का तात्पर्य प्रायः वयस्कों की सहमति से किये गए आचरण से होता है तथा इससे दुर्व्यवहार और शोषण का सटीक प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है।

POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 15 का विस्तार: सर्वोच्च न्यायालय ने POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 15 के तहत "बाल पोर्नोग्राफ़ी के भंडारण" शब्द की स्पष्ट व्याख्या की। पहले इस प्रावधान के तहत मुख्य रूप से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये भंडारण को शामिल किया जाता था। धारा 15 की न्यायालयी व्याख्या में तीन प्रमुख अपराध शामिल हैं।

बिना रिपोर्ट किये संग्रहीत करना: जो व्यक्ति बाल पोर्नोग्राफी संग्रहीत करता है या अपने पास रखता है तो उसे हटाना, नष्ट करना या निर्दिष्ट प्राधिकारी को रिपोर्ट करना चाहिये। ऐसा न करने पर यह धारा 15(1) के तहत दंडनीय हो सकता है।

संचारित या वितरित करने का उद्देश्य: जो व्यक्ति बाल पोर्नोग्राफी को अपने पास रखते हैं और रिपोर्टिंग के उद्देश्य को छोड़कर किसी भी तरीके से इसे संचारित या प्रदर्शित करने का इरादा रखते हैं तो उन्हें धारा 15(2) के तहत दंड हो सकता है।

वाणिज्यिक संग्रहण: वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये बाल पोर्नोग्राफी का भंडारण धारा 15(3) के अंतर्गत आता है, जिसमें सबसे कठोर दंड का प्रावधान है।

अपूर्ण अपराधों की अवधारणा: इस निर्णय में धारा 15 के अंतर्गत अपराधों को "अपूर्ण" अपराधों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि वे आगे के अपराध की दिशा में किये गए प्रारंभिक कृत्य हैं।

अधिग्रहण (Possession) की पुनर्परिभाषा: न्यायालय ने बाल पोर्नोग्राफी मामलों में "अधिग्रहण" की परिभाषा का विस्तार किया है। इसमें अब "रचनात्मक अधिग्रहण" शामिल है, जो उन स्थितियों को संदर्भित करता है, जहाँ कोई व्यक्ति भौतिक रूप से सामग्री को अपने पास नहीं रख सकता है लेकिन उसके पास उसे नियंत्रित करने की क्षमता है और उस नियंत्रण का ज्ञान भी है। 

उदाहरण के लिये बिना डाउनलोड किये ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अवैध माना जा सकता है।

यदि किसी व्यक्ति को बाल पोर्नोग्राफी का लिंक प्राप्त होता है लेकिन वह रिपोर्ट किये बिना उसे बंद कर देता है और यदि वह प्राधिकारियों को सूचित नहीं करता है, तो उसे उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, भले ही लिंक बंद करने के बाद भी वह उस पर भौतिक रूप से अधिग्रहण न रखे।

शैक्षिक सुधार: न्यायालय ने सरकार से स्कूलों और समाज में व्यापक यौन शिक्षा को बढ़ावा देने का आग्रह किया है ताकि यौन स्वास्थ्य के बारे में चर्चाओं को अनुचित मानने वाली गलत धारणाओं का मुकाबला किया जा सके।

इस शिक्षा में सहमति, स्वस्थ संबंध, लैंगिक समानता और विविधता के प्रति सम्मान जैसे विषय शामिल होने चाहिये।

पोक्सो अधिनियम, 2012 के बारे में जागरूकता: पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 43 और 44 के तहत केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को अधिनियम के बारे में व्यापक जागरूकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

विशेषज्ञ समिति का गठन: स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के लिये व्यापक कार्यक्रम तैयार करने तथा बच्चों में POCSO अधिनियम, 2012 के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये एक विशेषज्ञ समिति को कार्य सौंपा जाना चाहिये।

पीड़ितों को सहायता और जागरूकता: इस निर्णय में CSEAM के पीड़ितों के लिये मनोवैज्ञानिक परामर्श, चिकित्सीय हस्तक्षेप और शैक्षिक सहायता सहित मज़बूत सहायता प्रणालियों की आवश्यकता को रेखांकित किया गया।

संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT) जैसे कार्यक्रम संज्ञानात्मक विकृतियों को दूर करने में मदद कर सकते हैं जो अपराधियों के बीच इस तरह के व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।

बच्चों के विरुद्ध अपराध की स्थिति

तेजी से बढ़ता बाज़ार: अमेरिका स्थित नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रन (NCMEC) के अनुसार विश्व में ऑनलाइन बाल यौन शोषण संबंधी सबसे अधिक तस्वीरें भारत में हैं, जिसके बाद थाईलैंड का स्थान है।

भौगोलिक वितरण: बाल पोर्न के अधिकतम अपलोड के मामले में दिल्ली शीर्ष पर हैं इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है।

प्रचलन में वृद्धि: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट 2023 के अनुसार वर्ष 2018 में चाइल्ड पोर्न बनाने या संग्रहीत करने के 781 मामले दर्ज किये गए। वर्ष 2022 में बच्चों से संबंधित अनुचित सामग्री के प्रसार के 1,171 मामले सामने आए।

पोक्सो अधिनियम

परिचय: इस कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण और यौन दुर्व्यवहार के अपराधों को हल करना है। इस अधिनियम के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति बालक है।

इसे वर्ष 1992 में भारत द्वारा बाल अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप अधिनियमित किया गया था।

विशेषताएँ:

लैंगिक-तटस्थ प्रकृति:

अधिनियम मानता है कि बालक एवं बालिकाएँ दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं और पीड़ित किसी भी लिंग का हो, उसके साथ ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।

यह इस सिद्धांत के अनुरूप है कि सभी बच्चों को यौन दुर्व्यवहार एवं शोषण से सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है और कानूनों को लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिये।

पीड़ित की पहचान की गोपनीयता: POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 23 के अनुसार बाल पीड़ितों की पहचान गोपनीय रखी जानी चाहिये। मीडिया रिपोर्ट में पीड़ित की पहचान उजागर करने वाली कोई भी जानकारी नहीं दी जानी चाहिये जिसमें उनका नाम, पता और परिवार की जानकारी शामिल है।

बाल दुर्व्यवहार के मामलों की अनिवार्य रिपोर्टिंग: धारा 19 से 22 ऐसे व्यक्तियों को, जिन्हें ऐसे अपराधों की जानकारी है या उचित संदेह है, संबंधित प्राधिकारियों को रिपोर्ट करने के लिये बाध्य करती है।

पोक्सो अधिनियम, 2012 के कार्यान्वयन में कमियाँ:

सहायक व्यक्तियों की कमी: POCSO अधिनियम, 2012 के कार्यान्वयन में प्रमुख कमी पीड़ितों के लिये “सहायक व्यक्तियों” की अनुपस्थिति है। सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि POCSO के 96% मामलों में पीड़ितों को कानूनी प्रक्रिया के दौरान आवश्यक सहायता नहीं मिलती है।

सहायक व्यक्ति वह व्यक्ति या संगठन हो सकता है जो बाल अधिकार या बाल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करता है।

POCSO न्यायालयों का अपर्याप्त पदनाम: सभी ज़िलों में POCSO न्यायालयों को नामित नहीं किया गया है। वर्ष 2022 तक फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की योजना के तहत 28 राज्यों में केवल 408 POCSO न्यायालय स्थापित किये गए थे।

विशेष लोक अभियोजकों की कमी: POCSO मामलों को संभालने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित विशेष लोक अभियोजकों की कमी है।

निष्कर्ष

शिक्षकों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और कानून प्रवर्तन सहित हितधारकों के बीच समन्वित प्रयास बाल यौन शोषण में शीघ्र हस्तक्षेप हेतु महत्त्वपूर्ण है।


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