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सिविल सेवा, सहायक संचालक तकनीक, उपसंचालक, सहायक संचालक औद्योगिक स्वास्थ्य व
सुरक्षा भर्ती, खाद्य विश्लेषक, औषधी विश्लेषक, सहायक प्राध्यापक, प्राचार्य तथा
अन्य नियुक्ति के लिए साक्षात्कार में सफलता के सूत्र- डॉ. जयंतीलाल भंडारी के
द्वारा ( इंटरव्यू तैयारी-भाग 2)
साक्षात्कार संबंधी भ्रम या पूर्वाग्रहों का निवारण
अनेक अभ्यर्थियों के मन में साक्षात्कार के संबंध में एक अनजाना भय सा व्याप्त रहता है । साक्षात्कार कैसा होता है ? क्या होता है ? साक्षात्कार लेने वाले कौन लोग होते हैं ? क्या पूछते हैं ? उनके प्रश्नों का उत्तर कैसे देना होता है ? प्रश्न अंग्रेजी में पूछे जाते हैं या हिंदी में या किसी अन्य भाषा में ? जिसे अंग्रेजी भाषा का अच्छा या पर्याप्त ज्ञान नहीं हो वह क्या करें ? प्रश्नों के उत्तर कैसे दिए जाने चाहिए ? साक्षात्कार देने के लिए किस प्रकार के कपड़े पहनना चाहिए ? साक्षात्कार से पूर्व क्या-क्या तैयारियाँ करनी चाहिए ? आदि कई प्रकार के प्रश्न प्रत्याशियों के मन में स्वाभाविक रूप से उभरते हैं जिनका उत्तर खोजने में बेवजह परेशान होते रहते है जिसका बुरा प्रभाव उनकी तैयारी पर निश्चित रूप से पडता है, जबकि इन प्रश्नों के उत्तर इन प्रश्नों की उत्पत्तित के कारणों में ही निहित होते हैं और इन प्रश्नों की उत्पत्ति के सामान्य कारण होते हैं- अभ्यर्थियों को अपनी अज्ञानता, साक्षात्कार संबंधी जानकारियों का अभाव, मिथ्या, अल्प अथवा दिशाहीन मार्गदर्शन के कारण उनके मन में उत्पन्न हुई भ्रांतियाँ आदि । इनका निवारण आप स्वयं कर सकते हैं- अपने स्वाध्याय, लगन एवं श्रम से किसी योग्य मार्गदर्शक के कुशल मार्गदर्शन में । साक्षात्कार के अभ्यर्थी निम्नांकित पक्षों पर विशेष ध्यान दें-
व्यक्तित्व
सामान्यतया किसी व्यक्ति के शारीरिक बनावट अर्थात् उसके रंग-रूप, उसकी कद-काठी उसके रहन-सहन, वस्त्र (पहनावा-ओढ़ावा), केश विन्यास इत्यादि को देखकर उस व्यक्ति विशेष की जो छवि किसी दूसरे व्यक्ति के मन में बनती है, उसे ही साधारणतया लोग `व्यक्तित्व' (perosnality) समझ बैठते हैं, जो कि भ्रामक है । सिर्फ बाहरी बनावट को ही `व्यक्तित्व' नहीं माना जा सकता ।
वस्तुत: व्यक्तित्व का अर्थ व्यापक है । व्यक्तित्व का अभिप्राय किसी व्यक्ति विशेष के उन सभी गुणावगुणों के विश्लेषण से प्राप्त परिणाम से है, जो उसमें अनिवार्य रूप से विद्यमान हो सकते हों, जैसे- उस व्यक्ति विशेष का रूप-रंग, रहन-सहन, पहनावा-ओढ़ावा, कद-काठी, शिक्षा-दीक्षा, बोल-चाल, ज्ञान, क्षमता, साहस, धैर्य, विवेक, चरित्र, आदतें, शौक या अभिरूचि, विचार, व्यवहार, द्यिष्टकोण आदि । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को निर्धारित करने वाले उपर्युक्त कारकों के विश्लेषण के बाद ही यह निश्चित किया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा है ।
सामान्य ज्ञान
एवं सहज ज्ञान
`सामान्य ज्ञान' का तात्पर्य किसी व्यक्ति का किसी विशेष के संबंध में उसके `साधारण ज्ञान' से कदापि नहीं है, बल्कि सामान्य ज्ञान का अभिप्राय किसी व्यक्ति के उस ज्ञान (आसपास, परिवेश, समाज, राजनीति, देश-विदेश को गतिविधियों, पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, खेल एवं संस्कृति आदि के संबंध में नवीनतम जानकारी) से है जिसकी अपेक्षा उस व्यक्ति विशेष की आयु योग्यता एवं क्षमता के अनुरूप की जा सकी है । किसी विषय विशेष का सुविस्तृत ज्ञान सामान्य ज्ञान की श्रेणी में नहीं आ सकता और न ऐसा ज्ञान जिसकी अपेक्षा उस व्यक्ति से नहीं की जानी चाहिए जैसे- सामाज विज्ञान अथवा अभियंत्रण से संबंधित किसी गूढ़ प्रश्न के उत्तर की न तो अपेक्षा की जा सकती है और न वैसे प्रश्न को सामान्य ज्ञान के अंतर्गत पूछा जा सकता है, क्योंकि इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर की अपेक्षा एक साधारण पढ़े-लिखे व्यक्ति से भी की जा सकती है ।
जहाँ तक `सहज ज्ञान' का प्रश्न है तो यह किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण भाग है । कभी-कभी यह `सहज ज्ञान' किसी व्यक्ति के लिए अद्भुत एवं लाभदायक सिद्ध हो जाता है और उसका अभाव कभी-कभी किसी व्यक्ति के लिए अत्यंत हानिकारक हो जाता है । `सहज ज्ञान' को `प्रत्युत्पन्नता' कहा जा सकता है । जो `पूर्वाभास' और `विवेक' के आधार पर तत्क्षण विकसित `निर्णय-क्षमता' होती है । `सहज ज्ञान' का प्रयोग सामान्यता उस समय किया जाता है जब कोई विषम परिस्थिति उत्पन्न हो गई हो अथवा जब कोई ऐसा विकट प्रश्न सामने खड़ा हो गया हो जिसका सही उत्तर या तो ज्ञात न हो या उत्तर के प्रति मन में कोई संशय हो अथवा उत्तर याद न हो, किंतु उत्तर तत्काल देना आवश्यक हो ।
कार्य के प्रति रुचि, कार्य को समझने की क्षमता और समर्पण की भावना
साक्षात्कार में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में शमिल होने के पूर्व निम्नांकित बातों की जानकारी अवश्य होनी चाहिए-
अभ्यर्थी किस पद पर नियुक्ति हेतु साक्षात्कार में सम्मिलित हो रहा है ?
अभ्यर्थी जिस पद पर नियुक्ति हेतु साक्षात्कार में सम्मिलित हो रहा है, उस पद के दायित्व अथवा अधिकार और कर्तव्य क्या है ?
जिस पद हेतु साक्षात्कार देने जा रहा है उस पद में अभ्यर्थी की रुचि है या नहीं ?
साक्षात्कार के बारे यदि अभ्यर्थी की नियुक्ति उस पद पर कर दी जाती है तो वह अपनी बेहतर कार्यक्षमता कैसे प्रदर्शित कर पाएगा ?विषय-वस्तु
संबंधी ज्ञान
साक्षात्कार में शामिल होने के पूर्व प्रत्येक अभ्यर्थी को विषय-वस्तु संबंधी अपने ज्ञान की जाँच करके आश्वस्त हो लेना चाहिए कि जिस विषय अथवा जिन विषयों के साथ उसने इंटर, स्नातक अथवा स्नातकोत्तर किया है, उस अथवा उन विषयों का उसे समुचित ज्ञान है । उल्लेखनीय है कि `साक्षात्कार' में कुछ ऐसे प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं, जिनसे अभ्यर्थी के विषय-वस्तु संबंधी ज्ञान की जाँच की जा सके । अत: साक्षात्कार की तैयारी करते समय उन विषयों का पुनरावलोकन या पुनरीक्षण अवश्य कर लेना चाहिए ताकि साक्षात्कार में पूछे जाने वाले प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर दिया जा सके । इन विषयों के पुनरावलोकन से एक ओर जहाँ अभ्यर्थी के विषय-वस्तु संबंधी ज्ञान का नवीकरण होता है, वहीं दूसरी ओर अभ्यर्थी के आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है।
आगे हम कुछ वैसे मानवोचित गुणों पर विचार-विमर्श करेंगे जो कि व्यक्तित्व के विकास एवं साक्षात्कार में सफलता प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं । इनमें से कुछ उल्लेखनीय गुण हैं-
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मुद्रा या हाव-भाव
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स्वाभाविक व्यवहार या तौर-तरीके
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शिष्टाचार का ज्ञान
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प्रभावशाली अभिव्यक्ति या संभाषण कला
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स्मरण शक्ति
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व्यापक एवं खुला दृष्टिकोण या सोचने का
सकारात्मक तरीका
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विनम्रता
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विषय का पर्याप्त ज्ञान
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हीन भावना से मुक्ति
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वैचारिक स्थिरता
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नेतृत्व का गुण
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समयानुकूल वस्त्र या परिधान
उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर अपने व्यक्तित्व को संवारकर, निखारकर एवं परिष्कृत करके प्रभावशाली बना सकते हैं और यदि आपका व्यक्तित्व प्रभावशाली एवं आकर्षण होगा तो साक्षात्कार में सफलता प्राप्त करना आपके लिए सरल हो जाएगा । अब प्रश्न यह है कि उपर्युक्त बिंदुओं को ध्यान में रखकर व्यक्तित्व को कैसे सजाया-सँवारा जा सकता है ? आइए अब इसके लिए उर्पयुक्त बिंदुओं की विवेचना करें-
मुद्रा या हाव-भाव
साक्षात्कार के समय अभ्यर्थी की मुद्रा कैसी रहती है अथवा उसका हाव-भाव कैसा रहता है, इसका बहुत महत्व होता है । तात्पर्य यह कि साक्षात्कार के दौरान किसी अभ्यर्थी से विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं, जिनमें से कुछ प्रश्न गंभीर प्रकृति के हो सकते हंै अथवा कभी-कभी अभ्यर्थियों की मानसिक परिपक्वता की जाँच के उ ेश्य से कुछ दुविधापूर्ण या भ्रामक प्रकार के प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं । इनमें से कुछ प्रश्नों के उत्तर अभ्यर्थी बड़े सरलता से दे देते हैं । ऐसे प्रश्नों का उत्तर देते समय अभ्यर्थी के चेहरे पर या तो सामान्य भाव होते हैं या इत्मीनना का भाव रहता है । किंतु जिन प्रश्नो का उत्तरों की सत्यता के प्रति वह आश्वस्त नहीं होता है, वैसे प्रश्नों का उत्तर देते समय अभ्यर्थी यदि कुछ परेशानी महसूस कता है तो उसके चेहरे पर तनाव उत्पन्न हो जाता है । जिन प्रश्नों का उत्तर देने में अभ्यर्थी भ्रम में पड़ जाता है, उन प्रश्नों के उत्तर देते समय अभ्यर्थी के चेहरे पर शिकन, तनाव, परेशानी, भय, हताशा आदि के मिश्रित भाव उत्पन्न हो जाते हैं तथा उसकी मुद्रा में असामान्यता परिलक्षित होती है । कुल मिलाकर इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देते समय अभ्यर्थी का हाव-भाव बिगड़ जाता है तथा वह स्वयं को सहज व सामान्य नहीं रख पाता है अथवा स्वयं को बलताए सहज या सामान्य दिखाने के कम में हड़बड़ा जाता है तथा इस हड़बड़ाहट में कोई-न-कोई ऐसी भूल कर बैठता है जो उसकी असफलता का कारण भी बन सकती या बन जाती है । अत: साक्षात्कार के दौरान प्रत्येक अभ्यर्थी को आदि से अंत तक स्वयं को सहज व सामान्य बनाए रखना चाहिए । इसके लिए सावधानी भी बरतनी चाहिए ताकि कोई चूक न हो जाए । उल्लेखनीय है कि साक्षात्कार में स्वयं को सहज व सामान्य रखने के लिए यह परमआवश्यक है कि अभ्यर्थी को साक्षात्कार में पूछे जा सकने वाले प्राय: सभी प्रकार के प्रश्नों की विविधता, उनके स्तर, उनकी व्यापकता का सही अनुमान हो, उनके सटीक उत्तरों की सही जानकारी हो और उसने साक्षात्कार का कुछ पूर्वाभ्यास भी कर रखा हो यह इस तथ्य को याद रखना चाहिए कि जिन्हें प्रश्नों के सही उत्तर की स्पष्ट जानकारी होती है वे न तो दुविधा में पड़ते हैं और न उन्हें साक्षात्कार में स्वयं को सहज रखने में कोई परेशानी होती है ।
स्वाभाविक व्यवहार
स्वाभाविक व्यवहार से तात्पर्य वैसे व्यवहार से है, जिसकी अपेक्षा किसी सामान्य व्यक्ति से की जाती है । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि साक्षात्कार के दौरान अभ्यर्थी से विभिन्न प्रकार के प्रश्न कठिन और कुछ प्रश्न गंभीर प्रकृति के हो सकते हैं अथवा कभी-कभी अभ्यर्थियों की मानसिक परिपक्वता की जाँच के उद्देश्य से कुछ दुविधापूर्ण या भ्रामक प्रकार के प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं । इनमें से कुछ प्रश्नों के उत्तर अभ्यर्थी बड़ी सरलता से दे देते हैं । ऐसे प्रश्नों का उत्तर देते समय अभ्यर्थी के चेहरे पर या तो सामान्य भाव होते हैं या इत्मीनान का भाव रहता है । किंतु जिन प्रश्नों का उत्तर अभ्यर्थी जानता ही नहीं होता है, वैसे प्रश्नों का उत्तर देते समय अभ्यर्थी यदि कुछ परेशानी महसूस करता है तो उसके चेहरे का भाव या तो असामान्य हो जाता है अथवा उसके चेहरे पर तनाव उत्पन्न हो जाता है । जिन प्रश्नों का उत्तर देने में अभ्यर्थी भ्रम में पड़ जाता है, उन प्रश्नों के उत्तर देते समय अभ्यर्थी के चेहरे पर शिकन, तनाव, परेशानी, भय एवं बोलने का तरीका आदि में अनुशासन के नियमों का बिना किसी दिखावा या अतिशय औपचारिकता का अनुपालन सामान्य व्यवहार के अंतर्गत आता है ।
शिष्टाचार का ज्ञान
प्रत्येक अथ्यर्थी को शिष्टाचार का ज्ञान होना अनिवार्य है । शिष्टाचार का सामान्य अर्थ होता है- शिष्ट या भद्र आचरण अथवा व्यवहार । शिष्टाचार का तात्पर्य यहाँ पर कुछ वैसी औपचारिकताआें से भी है, जिनका अनुपालन साक्षात्कार से पूर्व, साक्षात्कार के समय और साक्षात्कार के बाद करना चाहिए । शिष्टचार का पालन करने से व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है । साक्षात्कार का सामना करने के पूर्व अपने व्यक्तिगत विवरण शैक्षणिक योग्यता आदि से संबंधित प्रमाण-पत्र आदि की जाँच यथासमय उचित पदाधिकारी के द्वारा करवाना, नाम पुकारे जाने पर अनुमति लेकर साक्षात्कार कक्ष में प्रवेश करना कक्ष में प्रवेश करने के साथ ही कक्ष में पहले से उपस्थित लोगों (साक्षात्कारकर्ताओं) का नियमानुसार अभिवादन करना, आज्ञा मिलने पर उचित स्थान पर सलीके से बैठना, स्थान ग्रहण करने के बाद तत्क्षण धन्यवाद देना, साक्षात्कार के दरम्यान स्वयं को शांत रखते हुए प्रत्येक प्रश्न का उत्तर ढंग से देना, किसी प्रकार की अभद्रता प्रदर्शित नहीं करना, आज्ञा मिलने पर अपने स्थान से उठ जाना तथा कक्ष से बाहर जाने के पूर्व सभी लोगों को धन्यवाद देना आदि कार्यवाहियों को शिष्टाचार के अंतर्गत माना जाता है ।
प्रभावशाली अभिव्यक्ति या सम्भाषण कला
अपनी वाक् क्षमता या सम्भाषण कला अथवा प्रभावशाली अभिव्यक्ति के द्वारा कोई वक्ता किसी श्रोता को अपनी और आकर्षित कर सकता है या उसे प्रभावित कर अपनी बात या अपने विचार को मनवा सकता है । अत: स्पष्ट है कि साक्षात्कार में भी वार्तालाप या अभिव्यक्ति अथवा सम्भाषण का अपना महत्व होता है । साक्षात्कार के दौरान अभ्यर्थी अपने व्यक्तित्व की एक विशिष्ट छाप छोड़ सकता है तथा इस प्रकार अपने साक्षात्कार को अपनी सफलता का माध्यम बनाने में सफल भी हो सकता है । साक्षात्कार के क्रम पूछे गए प्रश्नों का सटीक उत्तर स्पष्ट एवं अपेक्षाकृत कम शब्दों में सही ढंग से देना, उत्तर देते समय सही शब्दों का सही स्थान पर प्रयोग करना, उत्तर में अनावश्यक बातें न बनाना, उत्तर देने की शैली का सरल एवं सुग्राह्य होना अथवा उत्तर को क्लिष्टता मुक्त रखना, उत्तर देते समय चेहरे का भाव सौम्य रखना अर्थात् चेहरे पर थकान, परेशानी या तनाव परिलक्षित न होने देना, उत्तर की भाषा को सरल बनाए रखना तथा भाषा या भाव को कृत्रिमता से दूर रखना आदि प्रभावशाली अभिव्यक्ति के आवश्यक तत्व माने जा सकते हैं । किंतु अभिव्यक्ति को प्रभावशाली बनाने हेतु अथवा सम्भाषण कला में उत्कृष्ता (दक्षता) प्राप्त करने हेतु किसी भी अभ्यर्थी को निम्नांकित बिंदुओं पर अवश्य ध्यान देना चाहिए- शब्दों का पर्याप्त भंडार, सरल वाणी एवं शुद्ध भाषा, सही उच्चारण, वक्तव्य के कृत्रिमता से परहेज, विषय वस्तु का समुचित ज्ञान, भरपूर आत्मविश्वास।
स्मरण शक्ति
वैसे तो स्मरण शक्ति प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक, अपेक्षित एवं महत्वपूर्ण है, किंतु साक्षात्कार की तैयारी करने वाले प्रत्येक अभ्यर्थी के लिए इस गुण का विशेष महत्व है । स्मरण शक्ति का अभिप्राय मनुष्य के मस्तिष्क की उस विशिष्ट क्षमता से है जिसके कारण मनुष्य किसी बात, तथ्य या घटना आदि को याद रखता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उन्हें स्मरण करके उनका उपयोग करता है । साक्षात्कार एवं सामना करने की तैयारी के संदर्भ में अनेक विषयों एवं क्षेत्रों से संबंधित कतिपय बिंदुओं, सूचनाओ, तथ्यों, जानकारियों आदि को याद रखना परम आवश्यक होता है, ताकि साक्षात्कारकर्ताओं द्वारा पूछे जाने वाले विविध प्रकार के प्रश्नों का उत्तर अभ्यर्थी यथाशीघ्र सही-सही दे सकें । स्मरण शक्ति को बढ़ाने एवं उसे निखारने के लिए विभिन्न प्रकार की संबंधित विषय- वस्तुओं एवं पाठ्य सामग्रियों का नियमित अध्ययन एवं अभ्यास अनिवार्य है । अभ्यर्थियों को जो बात याद नहीं रहती हो अथवा जिन्हें याद करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। किसी पाठय सामग्री को दीर्घकाल तक स्मरण रखने के लिए नियमित अभ्यास का सबसे उपयुक्त समय बह्म मुहूर्त अथवा सुबह सबेरे का समय होता है, क्योंकि उस समय का वातावरण अत्यंत शांत, शीतल एवं स्वास्थ्यकर होता है । जिनकी स्मरण शक्ति तीक्ष्ण होती है, उन्हें अपने व्यक्तित्व के विकास में काफी सुविधा होती है तथा साक्षात्कार में सफलता प्राप्त करना उनके लिए सरल हो जाता है।
सकारात्मक सोच
सकारात्मक सोच का अभिप्राय किसी व्यक्ति के अंदर निहित उस भावना या गुण से है, जिसके कारण वह किसी वस्तु, व्यक्ति, घटना या विषय आदि के अच्छे पक्षों पर अपना ध्यान अधिक केंद्रित करता है अथवा उसके विषय में सोचते समय संकुचित दुष्टिकोण के बदले व्यापक द्यिष्टकोण अपनाता है । ऐसा माना जाता है कि प्राय: प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु, घटना, बात या विषय के दो पहलू होते हैं- एक सकारात्मक या अच्छा और दूसरा नकारात्मक या बुरा । सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति सामान्यतया किसी चीज के नकारात्मक सोच वाला व्यक्ति सामान्यतता किसी चीज के नकारात्मक या बुरे पक्ष पर ध्यान देने अथवा उसके गुण-दोषों का छिंद्रान्वेषण करने के बदले उस चीज के सकारात्मक या अच्छे पक्ष पर ध्यान देता है । उदाहरणस्वरूप आधा ग्लास पानी को कोई सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति कहता है कि ग्लास पानी से आधा भरा हुआ है अथवा आधा ग्लास पानी है, जबकि कोई नकरात्मक सोच वाला व्यक्ति कहता है कि आधा ग्लास खाली है । जहाँ तक सच बोलने की बात है तो दोनों ही व्यक्ति सच बोल रहे हैं किंतु जहाँ तक सोच की बात है तो प्रथम व्यक्ति की सोच सकारात्मक है और द्वितीय व्यक्ति की सोच नकारात्मक । किंतु यहाँ प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि व्यक्तित्व के विकास अथवा साक्षात्कार में नकारात्मक सोच होने से क्या अंतर पड़ता है ।
वस्तुत: किसी व्यक्ति के सोचने का अथवा किसी चीज के प्रति उसके दृष्टिकोण का सर्वाधिक असर उसके व्यक्तित्व एवं जीवन-दर्शन पर पड़ता है, तात्पर्य यह है कि कोई व्यक्ति किसी विषय में किस प्रकार की भावना या द्यिष्टकोण रख या अपना सकता है इसकी जानकारी उस व्यक्ति की सोच से ही मिलती है । तो इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि वह व्यक्ति कुंठित या हतोत्साहित है तथा जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण निराशाजनक हो सकता है और जो व्यक्ति स्वयं निराश हो अथवा कुंठाग्रस्त हो उसके लिए सफलता प्राप्त करना अत्यंत कठिन होता है । दूसरी ओर जो व्यक्ति सकारात्मक सोच या दृष्टिकोण रखता है उसमें अपेक्षाकृत अधिक जोश, उत्साह, हिम्मत व कुछ कर गुजरने की महत्वाकांक्षा होती है । फलत: ऐसे व्यक्तियों में आत्मबल भी अधिक होता है, जो उनके व्यक्तित्व के विकास में सहायक एवं सफलता के मार्ग को सुगम बनाने में सहयोगी होती है ।
साक्षात्कार के क्रम में कई बार कुछ ऐसे भी प्रश्न
अभ्यर्थियों के समक्ष रखे जाते हैं जो सरकारी निर्णयों, कानूनी प्रावधानों, व्यक्ति विशेष अथवा संस्था विशेष आदि से संबंधित
होते हैं अथवा किसी सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक या धार्मिक विवादों से जुड़े होते हैं तथा जिनका उत्तर देने से सामान्य
अभ्यर्थियों को अधिकांशत: संकोच या कठिनाई का सामना करना पड़ता है । कई बार ऐसा भी
होता है कि पूछे गए प्रश्न के विषय में अभ्यर्थी उनसे सहमत नहीं होता है, फिर भी प्रश्न का उत्तर देना उसके लिए आवश्यक होता है । ऐेसी स्थिति में
अभ्यर्थी को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए, पूछे गए प्रश्न
का समुचित एवं तर्कसंगत उत्तर देना चाहिए।</p>
विनम्रता
विनम्रता मानव का एक ऐसा विशिष्ट गुण है जिसकी सहायता से अच्छे को और अच्छा तो बनाया ही जा सकता है, बुरे या बिगड़े हुए को भी अच्छा बनाया जा सकता है, यहाँ तक कि गुस्से की ज्वाला को भी सुधार कर ठीक किया जा सकता है । वैसे विनम्रता मानव के लिए निर्धारित शिष्टाचारों में से एक है, किंतु जो व्यक्ति इसे आत्मसात कर लेता है उसका व्यक्तित्व स्वत: निखरकर आकर्षक बन जाता है । कोई भी व्यक्ति किसी विनम्र स्वभाव वाले व्यक्ति से सहज ही प्रभावित हो जाता है । यही कारण है कि साक्षात्कार में सफलता प्राप्त करने में भी अभ्यर्थी की विनम्रता काफी उपयोगी सिद्ध होती है।
विनम्रता का अभिप्राय सामान्यतया उस गुण या आचरण से है जो दूसरों को प्रिय प्रतीत होता हो और सुख पहुँचाता हो । किसी बात को सरलता से एवं मृदु भाषा में बोलना, किसी के साथ हठ, क्रोध या रोषपूर्ण व्यवहार न करना, व्यक्तिगत व्यवहार में कठोरता से पहेज करना, अपने कर्तव्य का पालन प्रेमपूर्वक करना, सबके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करना, विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य के साथ संबंधों की मर्यादा एवं शब्दों की शालीनता का पूर्णरूपेण निर्वाह करना आदि विनम्रता के अंतर्गत आते हैं । विनम्रता से एक ओर जहाँ अभ्यर्थी का व्यक्तित्व परिष्कृत होकर आकर्षक बनता है, वहीं दूसरी ओर साक्षात्कार के दौरान पूछे गए प्रश्नों का उत्तर विनम्रतापूर्वक देने से साक्षात्कारकर्ताओं पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है, जिसका लाभ निसंदेह अभ्यर्थी को मिलता है और अभ्यर्थी के लिए साक्षात्कार में सफलता प्राप्त करना सरल हो जाता है ।
विषय और विषयवस्तु का ज्ञान
साक्षात्कार का सामना करने वाले किसी भी अभ्यर्थी के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उसे विषय एवं विषय-वस्तु दोनों का ज्ञान हो । यहाँ विषय के ज्ञान से तात्पर्य है, अभ्यर्थी की शैक्षणिक पृष्ठभूमि से संबंधित विभिन्न विषयों की समुचित जानकारी । उदाहरणस्वरूप- विज्ञान, कला, वाणिज्य, अभियंत्रण, प्रबंधन इत्यादि में से जिस अभ्यर्थी ने जिन विषयों के साथ मैट्रिक या सेकंेड्री परीक्षा या स्नातक या स्नातकोत्तर किया हो, उस अभ्यर्थी को उन विषयों का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए ।
दूसरी ओर `विषय-वस्तु' के ज्ञान का अभिप्राय है- साक्षात्कार के दौरान पूछे गए प्रश्नों के विषय उससे संबंधित क्षेत्र, उसकी व्यापकता, प्रश्न की पृष्ठभूमि एवं उससे जुड़े विविध तथ्य व नवीनतम आंकड़े आदि की समुचित एवं अद्यतन जानकारियों से अभ्यर्थी के भिन्न होने से कोई प्रश्न किस आशय से पूछा जा रहा है, इसका ज्ञान, जिस पद पर नियुक्ति हेतु अभ्यर्थी का साक्षात्कार लिया जा रहा है, उस पद एवं उससे जुड़े विविध पक्षों एवं दायित्वों की जानकारी भी विषय-वस्तु के ज्ञान की परिधि में आ सकती है । अत: साक्षात्कार का सामना करने की तैयारी करते समय अभ्यर्थियों को इन बिंदुओं को भी ध्यान में रखना चाहिए ।
कुंठाओं से मुक्ति
जीवन में सफलता की इच्छा रखने वाले अथवा अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति की कामना करने वाले या किसी सामान्य व्यक्ति को भी कुंठाओं से मुक्त रहना चाहिए । वास्तव में कुंठा एक ऐसा मानसिक विकार है जिसके कारण कोई व्यक्ति उच्चक भावना या हीन भावना से ग्रस्त होकर अपने विषय में या तो कोई खुशफहमी पाल लेता है या फिर गलतफहमी का शिकार हो जाता है । इस प्रकार की मनोदशा वाला व्यक्ति या तो किसी समस्या को बहुत बड़ा करके देखता है या फिर बहुत छोटा करके, किसी कार्य को करने में वह स्वयं को या तो सर्वाधिक उपयुक्त या सक्षम समझता है या फिर बिलकुल अनुपयुक्त या अक्षम । ऐसे व्यक्ति या हो अतिआत्मविश्वासी होते हैं या फिर उनमें आत्मविश्वास का अभाव होता है । वैसे व्यक्ति जिनमें आवश्यकता से अधिक आत्मविश्वास का अभाव रहता है वे किसी कार्य को आरंभ करने से पहले ही अपनी हार मान लेते हैं । इस प्रकार ये दोनों ही स्थितियाँ सफलता के मार्ग में व्यवधान उत्पन्न करती हैं । अत: साक्षात्कार का सामना करने वाले अभ्यर्थियों को चाहिए कि वे किसी भी प्रकार के complax से स्वयं को बचाकर वास्तविकता को समझते हुए अपने विवेक से सही निर्णय लेने का प्रयत्न करें । यहाँ यह उल्लेख कर देना कदाचित अप्रासंगिक नहीं होगा कि कंुठा के संबंध में जो जानकारी ऊपर दी गई है, वह मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है, न कि किसी मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर । किसी प्रकार की मनोवैज्ञानिक विवेचना करना यहाँ हमारा उद्देश्य भी नहीं है । अत: कृपया किसी प्रवाह के संशय में पड़े बिना इस सलाह में निहित उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए साक्षात्कार हेतु आप अपनी तैयारी करें ।
वैचारिक स्थिरता
व्यक्तित्व के समुचित विकास हेतु एवं साक्षात्कार में सफलता के लिए अभ्यर्थी में वैचारिक स्थिरता का होना अपरिहार्य है । वैचारिक स्थिरता का तात्पर्य यह है कि किसी विषय में व्यक्ति की अपनी राय स्पष्ट एवं स्थिर होनी चाहिए । कहा जाता है कि किसी व्यक्ति को उसका विचार एवं कर्म ही महान बनाता है । किसी जिम्मेवार व्यक्ति के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उसकी एक निश्चित विचारधारा हो, क्योंकि बिना विचार के अथवा ज्ञान शून्य मनुष्य पशुवत् होता है ।
शीघ्र निर्णय
जिस व्यक्ति में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता होती है वह समय के साथ आगे बढ़ने में सक्षम होता है । प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिए व्यक्ति में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता अवश्य होनी चाहिए । साक्षात्कार के दौरान अभ्यर्थी अपने इस गुण का लाभ उठा सकते हैं । जिस अभ्यर्थी में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता है, साक्षात्कार में उसका प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर होता है । श्रीमान् ! मुझे खेद है, मैं इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता `या' `मैं नहीं जानता' आदि कुछ भी । असमंजस में पड़ने से स्पष्ट रूप से यह बता देना कि प्रश्न का उत्तर पता नहीं, श्रेयस्कर होता है । ``क्षमा करें'' या ``क्षमा करें, श्रीमान्'' कहकर उस प्रश्न को दुहराने हेतु निवेदन या प्रार्थना करनी चाहिए । स्पष्टता सभी को अच्छी लगती है । अत: अभ्यर्थी में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता अवश्य होनी चाहिए ।
आत्मविश्वास से परिपूर्ण
प्रत्येक अभ्यर्थी में भरपूर आत्मविश्वास का होना अत्यंत आवश्यक होता है, क्योंकि सही एवं त्वरित निर्णय लेने के लिए आत्मविश्वास अनिवार्य है । आत्मविश्वास के अभाव में व्यक्ति वह बात भी बताने से प्राय: चूक जाता है, जिसकी उसे पूरी जानकारी होती है । विशेष रूप से साक्षात्कार में वैसे अभ्यर्थियों से ऐसी चूक अक्सर हो जाया करती है, जिसमें आत्मविश्वास की कमी होती है ।
आत्मविश्वास से अभिप्राय उस विश्वास से है, जो विषय एवं विषय वस्तु के सम्यक् ज्ञान से किसी व्यक्ति के अंदर उत्पन्न होता है और जिसके कारण उसे असफलता का कोई भय नहीं रहता है । फलत: अभ्यर्थी या व्यक्ति निर्भीक होकर किसी प्रश्न का उत्तर देता है अथवा कोई कार्य करता है । वैसे अभ्यर्थी जो आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है परीक्षा भवन में अथवा साक्षात्कार के दौरान किसी भी प्रकार के प्रश्न पूछे जाने पर डरता या घबराता नहीं, भले ही उसे वैसे प्रश्नों का सही उत्तर ज्ञात न हो । साक्षात्कार के दौरान डरना या घबड़ाना आदि अभ्यर्थी के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं । आत्मविश्वास पैदा करने के लिए अभ्यर्थी में धैर्य, साहस, विषय एवं विषय-वस्तु का पर्याप्त ज्ञान होना परम आवश्यक है । विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों से मिलने-जुलने, सभाआें एवं गोष्ठियों आदि में भाग लेने, खेलकूद एवं अन्य प्रकार की गतिविधियों या सांस्कृतिक आयोजन आदि में शामिल होने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है । अत: भीरूता, संकोच, दुर्बलता आदि मानवीय कमजोरियों से छुटकारा पाने से भी आत्मविश्वास में वृद्धि होती है । अत: प्रत्येक अभ्यर्थी को चाहिए कि अपने व्यक्तित्व के समुचित विकास तथा साक्षात्कार में सरलता प्राप्त करने के लिए अपने अंदर भरपूर आत्मविश्वास जगाएं ।
नेतृत्व का गुण
जिस व्यक्ति में नेतृत्व का गुण होता है, उसका व्यक्तित्व स्वत: प्रभावशाली होता है । नेतृत्व की क्षमता रखने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व मंे सम्मोहन शक्ति होती है, जो अन्य साधारण व्यक्ति को अपनी ओर अवश्य आकर्षित करता है । जहाँ तक साक्षात्कारकर्ता अभ्यर्थियों मंे प्राय: नेतृत्व के गुण की तलाश अवश्य करते हैं । जिस व्यक्ति में नेतृत्व का गुण होता है, सफलता का मार्ग उसके लिए स्वयं सुगम हो जाता है । नेतृत्व की क्षमता का विकास करने के लिए अभ्यर्थी में आत्मविश्वास, आत्मसंयम, धैर्य एवं साहस जैसे गुणों का होना अत्यावश्यक है ।
शब्दों की मितव्ययिता
पूछे गए किसी भी प्रश्न का उत्तर देते समय शब्दों की मितव्ययिता पर भी ध्यान देना चाहिए । प्रश्न का उत्तर संक्षिप्त शब्दों में सही-सही एवं स्पष्ट रूप से देना चाहिए । अनावश्यक रूप से बढ़ा-चढ़ाकर या व्यर्थ अलंकारों से अलंकृत करके अथवा अतिश्योक्तियों का प्रयोग करके उत्तर को बोझिल बनाने से बिलकुल परहेज करना चाहिए । यदि आपके किसी उत्तर को परीक्षक, अपूर्ण समझें तो आवश्यकतानुसार अपने उत्तर की व्याख्या करके परीक्षक को तुरंत संतुष्ट कर देना चाहिए । किंतु इस संदर्भ में परीक्षक के साथ न तो कोई तर्क-वितर्क करना चाहिए और न उत्तेजित होकर या किसी अन्य प्रकार से कोई विवाद उत्पन्न करने की कोई चेष्टा करनी चाहिए । चाहे आप अपने दृष्टिकोण से सही और परीक्षक गलत ही क्यों न हों । कभी-कभी साक्षात्कारकर्ता एक प्रश्न से ही दूसरा प्रश्न निकाल लेते हैं अथवा अभ्यर्थी द्वारा दिए गए उत्तर के आधार पर कोई नया प्रश्न सृजित कर अभ्यर्थी के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं । ऐसी स्थिति में अभ्यर्थी को सतर्क रहते हुए किसी प्रश्न का उत्तर बहुत सोच-समझकर अल्प शब्दों में देना चाहिए । साथ ही, अभ्यर्थी को इस बात का भी प्रयास करना चाहिए कि उत्तरों में किसी प्रकार का पक्षपात न हो ।
अत: प्रत्येक अभ्यर्थी को चाहिए कि वह अपने व्यक्तित्व के विकास हेतु ऊपर वर्णित गुणों का विकास अपनी क्षमता के अनुरूप करने का प्रयत्न करें, ताकि उसे साक्षात्कार का सामना करने मे आसानी हो ।
साक्षात्कार की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों को वास्तविक साक्षात्कार से पूर्व कुछ बातों को ध्यान से रखते हुए साक्षात्कार का पूर्वाभ्यास (रिहर्सल) कर लेना चाहिए। इस पूर्वाभ्यास हेतु अभ्यर्थी यदि चाहें तो अपने दो-तीन मित्रों सहपाठियों या रिश्तेदारों का सहयोग ले सकते हैं । पूर्वाभ्यास हेतु अभ्यर्थियों को निम्नांकित बिंदुओं का ध्यान रखना चाहिए-
·
उनके मन-मस्तिष्क में किसी प्रकार की हीनता की भावना
नहीं आनी चाहिए ।
·
साक्षात्कार कक्ष में अनुमति लेकर प्रवेश करना
चाहिए तथा साक्षात्कार कक्ष के भीतर अभ्यर्थी को नियत स्थान (कुर्सी) पर तब तक
नहीं बैठना चाहिए जब तक कि उसे बैठने के लिए कहा न जाए ।
·
साक्षात्कार कक्ष में प्रवेश करते ही अभ्यर्थी
को साक्षात्कारकर्ताओं का औपचारिक ढंग से अभिवादन करना चाहिए ।
·
बोलने के ढंग में स्वाभाविकता, शिष्टाचार और ज्ञान का समन्वय होना चाहिए।
·
प्रश्नों के संबंध में किसी प्रकार की बहस
साक्षात्कारकर्ताओं के साथ नहीं करनी चाहिए ।
·
पूछे गए प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त, किंतु सटीक होने चाहिए ।
·
साक्षात्कार हेतु अभ्यर्थियों को अपनी शैक्षणिक
पृष्ठभूमि के अनुरूप संबद्ध विषयों का गहन अध्ययन करना चाहिए ।
·
अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के समय पूरी अवधि
में प्रसन्नचित, तरोताजा और मानसिक रूप से संतुलित रहना चाहिए ।
·
किसी भी कारण या परिस्थितिवश अभ्यदर्थी को
साक्षात्कार के समय उत्तेजित या विचलित नहीं होना चाहिए, चाहे इसके लिए उसे बाध्य करने का प्रयत्न ही क्यों न किया जाए ।
·
साक्षात्कार की तैयारी के समय ध्यान रखने योग्य
बातें-
·
हिंदी के क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग न करें बल्कि
उसके बदले में अंग्रेजी के सरल शब्दों का प्रयोग करें ।
·
जब बोर्ड का कोई सदस्य अंग्रेजी में प्रश्न करे
तो यथासंभव उनके प्रश्न का उत्तर अंग्रेजी में ही दें, ताकि बोर्ड के सदस्यों को यह विश्वास हो कि हिंदी में साक्षात्कार देने का यह
अर्थ नहीं है कि उम्मीदवार को अंग्रेजी बोलना नहीं आता है । यही बात अंग्रेजी
माध्यम वाले उम्मीदवार के साथ भी हिंदी के संबंध में लागू होती है ।
·
साक्षात्कार कक्ष में पूरी कुर्सी पर सीधा बैठना
चाहिए न कि आगे झुककर । बैठने के बाद दाहिने पैर को बायें पैर से थोड़ासा आगे रखें
। यह आत्मविश्वास-सूचक है ।
·
उच्चारण साफ होना चाहिए एवं आवाज तेज नहीं होनी
चाहिए ।
·
अगर आप साक्षात्कार में कुछ गलत बोल जाते हैं और
यदि बोर्ड के सदस्य आपका ध्यान आपकी उस गलती की ओर दिलाएं तो अपनी गलती को तुरंत
स्वीकार करके उसके लिए खेद प्रकट कर अपनी गलती को सुधार लेना चाहिए ।
·
आपने जिस या जिन विषयों के साथ डिग्री या आनर्स
अथवा स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई पूरी की है आपको उस विषय विशेष या उन विषयों का
विस्तृत ज्ञान होना चाहिए, साथ ही समसामयिक घटनाओं पर भी आपकी अच्छी पकड़
होनी चाहिए ।
·
साक्षात्कार से पहले भरे जाने वाले फार्म में
हॉबी एवं रुचि सोच समझकर भरें । इस संदर्भ में न तो किसी की देखा-देखी करें और न
दूसरों से प्रभावित हों ।
·
यदि आपके विचार बोर्ड के सदस्यों से किसी बिंदु
या प्रश्न पर नहीं मिलते हों अथवा वे (इटरव्यू बोर्ड के सदस्य) कोई बात बार-बार
कहकर (विशेषकर आर्थिक मामलों से संबंधित प्रश्नों में) अपनी बात साबित करवाना
चाहते हों तो वैसी परिस्थिति में पूर्ण आत्मविश्वास के साथ एवं अपने विवेक के
अनुसार अपनी बातों को बोर्ड के समक्ष रखकर बोर्ड के माननीय सदस्य के विचार के साथ
अपने विचार का तादात्म्य स्थापित करें अथवा लचीला रुख अपनाकर मध्य का रास्ता
निकालने का प्रयास करें ।
· साक्षात्कार की सुबह के समाचार-पत्र का अवलोकन अवश्य कर लें।
वस्त्र या परिधान का चयन
किसी भी प्रकार अथवा किसी भी स्तर के साक्षात्कार में वांछित सफलता प्राप्त करने के लिए अभ्यर्थी के व्यक्तित्व का आकर्षक एवं प्रभावशाली होना अत्यंत आवश्यक होता है जिस पद हेतु किसी अभ्यर्थी का चयन साक्षात्कार के माध्यम से किया जाता है उस पद पर नियुक्ति हेतु उस व्यक्ति या अभ्यर्थी में शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ अन्य गुण भी हैं या नहीं इसकी जाँच व्यक्तित्व परीक्षण के द्वारा की जाती है । व्यक्तित्व विकास के एक अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष-वस्त्र या परिधान या पहनावा के संबंध में कुछ उपयोगी जानकारी दी जा रही है ।
अभ्यर्थी को साक्षात्कार में भाग लेने हेतु वस्त्रों का चयन करते समय निम्नांकित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
·
वस्त्र मौसम के अनुकूल हों ।
·
वस्त्र अभ्यर्थी की शारीरिक गठन व कद-काठी को
ध्यान में रखकर सिले हों।
·
वस्त्र का रंग शरीर और अवसर के लिए उपयुक्त हो ।
अंग्रेजी में एक प्रचलित उक्ति हैं- ` Simple living high thinking' अर्थात् `सादा जीवन उच्च विचार' `सादा जीवन से अभिप्राय है- सादाभोजन, सादा वेश, आदर्श आचरण आदि । साक्षात्कार में भी पहनावा या वेश-भूषा की दृष्टि से सामान्यतया अभ्यर्थियों से सादगी अपेक्षित होती है । अत:, अभ्यर्थियों को चाहिए कि साक्षात्कार के अवसर पर पहनने के लिए यथासंभव सादे वस्त्र का ही चयन करें । यहाँ सादा वस्त्र से तात्पर्य उजले या रंगहीन अथवा बेतरतीब (मुड़े-तुड़े, बिना इस्त्री किए हुए) वस्त्र से कदापि नहीं है । यहाँ हमारा आशय यह है कि वस्त्र भारी, भड़कीला या फैंसी न हो, बल्कि सामान्य, सादा और सुंदर हो । उल्लेखनीय है कि साफ-सुधारे और अच्छी प्रकार से सिले वस्त्र व्यक्तित्व को निखारने में सहायक होते हैं ।'
साक्षात्कार का सामना करने वाले अभ्यर्थियों के लिए वेश-भूषा बहुत अहमियत रखता है । किंतु कुछ लोगों में यह भ्रांति अब तक व्याप्त है कि `साक्षात्कार' का सामना करने के लिए नए अथवा काफी कीमती वस्त्र धारण करना चाहिए । लेकिन ऐसी धारणा सर्वथा गलत है, क्योंकि न तो साक्षात्कारकर्ता किसी भी अभ्यर्थी से नये अथवा अधिक मूल्य वाले वस्त्र पहनकर साक्षात्कार हेतु उपस्थित होने की अपेक्षा करते हैं और न सभी अभ्यर्थियों की आर्थिक स्थिति ऐसी होती है कि वे ऐसे अवसरों पर नए अथवा अधिक कीमत वाले वस्त्र बनवा कर धारण कर सकें । दूसरे, नए सिले वस्त्रों को पहनकर साक्षात्कार में उपस्थित होने पर अभ्यर्थियों को कुछ व्यवहारिक असुविधाएँ भी होती हैं, क्योंकि सामान्यता नए वस्त्रों में अभ्यर्थी स्वयं को आरामदायक स्थिति में नहीं पाता है । फलत: साक्षात्कार के दौरान अभ्यर्थी का ध्यान अनायास ही कई बार उसके अपने वस्त्रों की ओर आकर्षित हो जाता है जिसके कारण साक्षात्कार के क्रम में उसकी एकाग्रता भंग हो जाती है इसका नुकसान तो अंततोगत्वा अभ्यर्थी को ही भुगतना पड़ता है । अत: वस्त्रों के चयन में अभ्यर्थी को पूरी सावधानी रखनी चाहिए ।
महिला अभ्यर्थियों के लिए परिधान
व्यक्तित्व को निखारने में संपूर्ण परिधान का महत्वपूर्ण योगदान होता है। किंतु कोई न जचने वाली या न चलने वाली चीज को बलात् धारण करने की अपेक्षा उसे नहीं धारणा करना अच्छा होता है । विशेष रूप से साक्षात्कार जैसे विशेष उद्देश्य व अवसर की दृष्टि से अवसरोचित परिधान का अवलोकन, निरीक्षण व विश्लेषण उतना ही आवश्यक है जितना कि महिलाओं के परिधान का । वैसे इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पुरुषों के परिधान की अपेक्षा महिलाओं के परिधान पर प्रांतीय, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वस्त्रों के डिजाइन आदि में होनेवाले नवीनतम परिवर्तनों तथा मौसम का प्रभाव अधिक व शीघ्र पड़ता है । तात्पर्य यह है कि देश, काल, मौसम, फैशन आदि में परिवर्तन के कारण महिलाओं के परिधान में जितनी विविधता होती है अथवा जितना परिवर्तन या उतार-चढ़ाव होता है उतना पुरुषों के परिधान में नहीं होता है । यद्यपि आजकल महिला अभ्यर्थी साक्षात्कार के अवसर पर सलवार-समीज, पंजाबी सूट, जींस पैंट एवं टी-शर्ट का भी उपयोग कर लेती हैं । किंतु फिर भी, भारतीय महिलाओं का मुख्य परिधान साड़ी-ब्लाउज ही माना जाता है । हाँ, साड़ी के डिजाइन या साड़ी पहनने के ढंग में स्थान-स्थान पर अंतर हो सकता है, जैसे- गुजराती, मराठी, तमिल या बंगाली आदि विधियों के अनुरूप अलग-अलग प्रकार की अथवा अलग-अलग प्रकार से साड़ी को धारण किया जा सकता है । किंतु अवसरों को ध्यान में रखकर साड़ी का चयन किया जाता है, जैसे-विशेष पर्व-त्यौहारों पर रंग-बिरंगी, जरी- बनारसी की कीमती साड़ी, पार्टी आदि में भड़कीले रंग वाली साड़ी तथा क्वालिटी की साड़ी पहनी जाती है, जबकि दु:ख या शोक-संवेदना व्यक्त करने वाले अवसर पर सादा, श्वेत या काली साड़ी पहनी जाती है । किंतु, जहाँ तक साक्षात्कार की दृष्टि से महिलाओं के परिधान-चयन का प्रश्न है, तो इस संबंध में कुछ सीमाओं का ध्यान रखना अपेक्षित होता है ।
साक्षात्कार में व्यक्ति के बाह्म स्वरूप का प्रभावशाली होना आवश्यक है तथा व्यक्ति के बाह्म स्वरूप को प्रभावशाली बनाने में परिधान का योगदान सबसे अधिक होता है । साक्षात्कार का अवसर औपचारिक होता है अत: इस अवसर हेतु परिधान के चयन में संयम की आवश्यकता होती है । साक्षात्कार में प्रत्याशी महिला हो अथवा पुरुष उसके संपूर्ण परिधान का संयोजन ऐसा होना चाहिए जो उसके दूरदर्शी, दायित्वों के प्रति सजग, परिपक्व, दक्ष और पूर्ण विकसित व्यक्तित्व का प्रदर्शन करने में अपना सामग्रिक योगदान दे । संपूर्ण परिधान-चयन के संदर्भ में कौनसी सावधानी बरतनी चाहिए इस संबंध में कुछ उपयोगी जानकारियाँ आगे दी जा रही हैं ।
ज्ञातव्य है कि साक्षात्कार में शामिल होने वाली भारतीय महिला प्रत्याशियों के लिए इस अवसर के अनुरूप साड़ी ही अधिक उपयुक्त व सर्वाधिक गरिमामय परिधान रहता है । किंतु, कोई परिधान धारण करने के पूर्व महिला प्रत्याशियों को निम्नांकित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए-
·
ब्लाऊज बांह वाला तथा कम गहरे गले का होना चाहिए, अर्थात ब्लाउज स्लीवलेस या लो-कट गला वाला नहीं होना चाहिए-
·
वस्त्र ऐसा होना चाहिए जिसमें अंगों का उद्भासन
नहीं होता हो, अर्थात् वस्त्रों से किसी प्रकार अश्लीलता या
अशिष्टता का प्रदर्शन किसी भी रूप नहीं होना चाहिए
·
संपूर्ण परिधान के संयोजन के फलस्वरूप
व्यक्तित्व आकर्षक व प्रभावशाली अर्थात् स्मार्ट लगे, ऐसा प्रयास करना चाहिए, शारीरिक-सौष्ठव या शारीरिक सौंदर्य को यदि
मर्यादित ढंग से दिखाया जाए तो व्यक्तित्व निखरकर और आकर्षक बन जाता है। अत:
संपूर्ण परिधान-संयोजन गरिमापूर्ण होनी चाहिए ।
·
प्रत्याशी का परिधान-संयोजन ऐसा होना चाहिए जो
उसमें आत्म-विश्वास पैदा करे ।
·
प्रत्याशी के वस्त्र ऐसे (विचित्र बेढंगे, अस्वाभाविक या असुविधाजनक) नहीं होने चाहिए कि वह आत्म-सचेत होकर अपनी योग्यतओं
को सही ढंग से प्रदर्शित ही न कर सके, अर्थात् वस्त्र
या परिधान न तो बहुत कसा । हुआ हो और न बहुत ढीला-ढाला तथा इसे न तो अधिक भड़कीला
और न गलत ढंग से सिला हुआ होना चाहिए, क्योंकि इस
प्रकार के असुविधाजनक वस्त्र के कारण प्रत्याशी सामान्यतया इतना आत्म-सचेत हो जाता
है कि वह साक्षात्कार के दौरान भी अपने कपड़ों, बालों आदि को
कभी इधर से तो कभी उधर से पकड़कर या खींच कर ठीक करते रहता है ।
·
कपड़ों तथा केश-विन्यास में मर्यादा का ध्यान
रखना जरूरी होता है, अत: आवश्यकता से अधिक सज्जा उचित नहीं है ।
·
साक्षात्कार में शामिल होने वाली महिलाओं के लिए
हल्का मेक-अप ही ठीक रहता है ।
·
जूते या चप्पल साफ-सुथरे और पालिश किए हुए होने
चाहिए ।
·
जूते या चम्पल उतनी ही ऊँची एड़ी के पहनने चाहिए
जो शरीर व वस्त्र के अनुरूप भले लगे अर्थात सूट करें तथा न तो अधिक आवाज करें और न
प्रत्याशी की चाल को विकृत करें ।
·
यदि ठंड का मौसम हो और प्रत्याशी ने कोट या
कार्डिगन पहना हो तो उसके बटन ठीक से लगे रहना चाहिए ।
·
साक्षात्कार के समय सामान्यतया आभूषणों की
उपेक्षा ही करनी चाहिए । इस अवसर पर पहनने के लिए घड़ी, एक-दो चूड़ी, एक हल्की चेन तथा कान में छोटे फूल ही पर्याप्त
होते हैं ।
·
मन को तरोताजा रखने के लिए एकदम हल्के गंध वाले
इत्र का उपयोग सावधानीपूर्वक किया जा सकता है, किंतु तीक्ष्ण
गंध वाले इत्र का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए ।
·
बाल सफाई और सुंदर ढंग से संवरे तथा बंधे रहने
चाहिए, किंतु बालों में वेणी, गजरे, फूल आदि अनावश्यक रूप से ध्यान आकर्षित करने
वाली श्रृंगार-सामग्री का उपयोग नहीं करना चाहिए।
·
बाल खुले या बिखरे हुए नहीं होने चाहिए और न
चेहरे या आँख पर आने चाहिए ।
·
न तो वस्त्र का कोई बटन टूटा हुआ और न शरीर पर
कहीं कुछ फटा हुआ, पैबंद लगा हुआ था उघड़ा हुआ दिखाई देना चाहिए ।
·
संपूर्ण परिधान में कुछ भी ऐसा नहीं होना चाहिए, जिसके कारण साक्षात्कार के दौरान बोलने या अपनी भावना को सही ढंग से अभिव्यक्त
करने में बाधा पड़े ।
उपर्युक्त छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना अत्यावश्यक है, क्योंकि इन्हीं बिंदुओं की उपेक्षा प्रत्याशियों को साक्षात्कारकर्ता के समक्ष लापरवाह अनुत्तरदायी और आलसी या सुस्त प्रदर्शित करता है, जिसका बुरा प्रभाव नि:संदेह प्रत्याशी को ही सहन करना पड़ता है । परिधान भली प्रकार से धारण करके प्रत्याशी अपनी ताजगी और तत्परता तथा चुस्त और फुर्तीला होने का सफलापूर्वक प्रदर्शन कर सकते हैं । साक्षात्कार के दौरान मुँह में चुईगम, पान, सुपारी, गुटका, इलायची, लौंग आदि न तो डालना चाहिए और न पहले से मुँह में रखे रहना चाहिए । साक्षात्कार के समय अधिक सामान जैसे- छाता, पर्स, किताब, पत्रिका, समाचार पत्र गॉगल्स (धूप चश्मा) आदि नहीं लाना चाहिए ।
साक्षात्कार के लिए केश-विन्याश
साक्षात्कार कक्ष में प्रवेश के पूर्व अभ्यर्थी को देख लेना चाहिए कि उसके बाल बेतरीब तो नहीं है, अर्थात उनमें कंधा किया हुआ है या नहीं । साक्षात्कार के लिए उपस्थित होने से ठीक पहले अपने बालों को ठीक से सँवार लेना चाहिए, इसके लिए यदि आवश्यक हो तो एक पॉकेट कंधा भी साथ में रखा जा सकता है । महिला अभ्यर्थियों को एक छोटा कंघा अपने पर्स में रख लेना चाहिए, ताकि इंटरव्यू के ठीक पहले वह अपने चेहरे पर या इधर-उधर उड़ते-बिखरे बालों को ठीक से संवार सकें ।
पुरुष अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के कुछ दिन पूर्व ही अपने बालों को छँटबाकर उन्हें सेट करवा लेना चाहिए, क्योंकि साक्षात्कार के ठीक एक-दो दिन पूर्व कटाए-छँटाए गए बाल चेहरा पर भली-भाँति `सेट' या `सूट' नहीं करते अर्थात् एक बारगी देखने से ही चेहरा कुछ अटपटा सा या असामान्य प्रतीत होता है । अत: जहाँ तक संभव हो साक्षात्कार के तुरंत पहले बालों की छँटाई कराने से बचना चाहिए । किंतु साक्षात्कार के दिन पुरुष अभ्यर्थियों को दाढ़ी ठीक ढंग से (शेव) अवश्य बना लेना चाहिए ।
किसी धर्म विशेष से संबंध रखने वाले अभ्यर्थी यदि अपने सिर पर कोई टोपी या पगड़ी आदि धारण करते हैं तो उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उनकी टोपी या पगड़ी साफ-सुथरी हो एवं उनके चरित्र या परिधान के अनुकूल ही अर्थात् परिधान से मैच करती हों ।
चेहरे के हाव-भाव
सामान्यतया चेहरा को मस्तिष्क की अनुक्रमणिका कहा जाता है । साक्षात्कारकर्ता सामान्यत: किसी अभ्यर्थी के चेहरे को पढ़ने अथवा उसके चेहरे से अभिव्यक्त होने वाले भावों से बहुत कुछ समझ जाने में दक्ष होते हैं । अभ्यर्थी के चेहरे पर छायी स्वाभाविक मुस्कान अथवा चेहरे पर बलात् चस्पा की हुई कृत्रिम मुस्कुराइट में भेद करने में भी साक्षात्कारकर्त्ता निपुण होते हैं । प्राय: वे इतने अनुभवी होते हैं कि अभ्यर्थी के चेहरे पर द्रुत गति से बदलने वाले भवों में निहित अर्थ व अभिप्राय को भी सहज ही भाँप लेते हैं । अत: अभ्यर्थियों को चाहिए कि साक्षात्कार कक्ष में प्रवेश की अनुमति लेने के समय से लेकर साक्षात्कार की समाप्ति के बाद साक्षात्कार कक्ष से बाहर आ जाने तक वे अपने चेहरे की भाव-भंगिमा को नियंत्रित व संतुलित रखें ।
साक्षात्कार कक्ष में प्रवेश की अनुमति प्राप्त करने हेतु `क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?' कहते समय अभ्यर्थी के चेहरे पर एक आकर्षक मुस्कान दृष्टिगोचर होनी चाहिए, किंतु उस मुस्कान में कृत्रिमता का तनिक भी आभास नहीं होना चाहिए । साथ ही, यह मुस्कान साक्षात्कार बोर्ड के अध्यक्ष सहित सदस्यों का अभिवादन करने एवं उसके बाद भी कायम रखना चाहिए । यह मुस्कान अभ्यर्थी के आत्मविश्वास एवं इत्मीनन का द्योतक होता है, जो अभ्यर्थी एवं साक्षात्कार बोर्ड के बीच त्वरित तादाम्त्य स्थापित करने में सहायक होता है । उल्लेखनीय है कि एक भिंचा हुआ एवं गंभीर मुद्रा वाला चेहरा अभ्यर्थी और साक्षात्कारकर्ता दोनों के लिए माहौल को बोझिल, तनावपूर्ण एवं ऊबाऊ बनाता है, जबकि एक तत्पर, मोहक एवं स्वाभाविक मुस्कान साक्षात्कारकर्ताओं पर एक अनुकूल प्रभाव छोड़ती है । किंतु, ध्यान रखना चाहिए कि एक बार जब साक्षात्कार आरंभ हो जाए और खासकर जब साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार प्रक्रिया के प्रति गंभीर हो जाएँ तो अनावश्यक रूप से अपने चेहरे पर मुस्कान को लपेटे रखने के बदले अभ्यर्थी को अपनी मुख मुद्रा सहज, सामान्य और पूछे जाने वाले प्रश्नों व उनके उत्तरों के स्वभाव के अनुरूप परिवर्तनशील बना लेना चाहिए, क्योंकि परिस्थिति के अनुसार चेहरे के भाव में यदि परिवर्तन न हो और चेहरे पर व्यर्थ की मुस्कान व्याप्त रहे तो साक्षात्कारकर्ता को सच्चाई भाँपने में देर नहीं लगती और ऐसी परिस्थिति में कभी-कभी तो अभ्यर्थी को मूर्ख भी समझ लिया जाता है । अत: संपूर्ण साक्षात्कार के दौरान अभ्यर्थी के चेहरे के भावों का संतुलन बना रहे ।
साक्षात्कार की सफल तैयारी के लिए ख्यात करियर मार्गदर्शक डॉ. जयंतीलाल भंडारी
के मार्गदर्शन में तैयार प्रतियोगिता निर्देशिका की सफल साक्षात्कार तैयारी फाइल
से अपनी तैयारी को सफलता में बदलें।
इस फाइल का ऑनलाइन खरीदी मूल्य 100 रुपए और इसकी प्रिंटेंड नोट्स फाइल का
मूल्य 400 रुपए है।