भ्रूण प्रत्यारोपण का जीन-स्विच: भारतीय वैज्ञानिकों की बड़ी खोज


भ्रूण प्रत्यारोपण का जीन-स्विच: भारतीय वैज्ञानिकों की बड़ी खोज

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के अध्ययन में गर्भावस्था की शुरुआत को समझने के लिए एक “जीन-स्विच” का पता चला, जो भ्रूण को गर्भाशय की झिल्ली से चिपकने में मदद करता है और गर्भधारण संभव बनाता है।

गर्भावस्था शुरू होने के लिए भ्रूण का गर्भाशय की झिल्ली से जुड़ना और उसमें समाहित होना आवश्यक है, लेकिन यह प्रक्रिया कैसे होती है, यह लंबे समय तक रहस्य बनी रही।

अंतरराष्ट्रीय पत्रिका Cell Death Discovery में प्रकाशित अध्ययन में भ्रूण प्रत्यारोपण को नियंत्रित करने वाले मौलिक जैविक स्विच का खुलासा हुआ। यह अध्ययन ICMR-NIRRCH, मुंबई, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी और भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के सहयोग से किया गया।

अध्ययन के अनुसार दो जीन HOXA10 और TWIST2 सही समय पर गर्भाशय की झिल्ली पर छोटे-छोटे द्वार खोलने और बंद करने का काम करते हैं। हॉक्सा10 झिल्ली को सुरक्षित रखता है, जबकि भ्रूण के आगमन पर यह अस्थायी रूप से बंद होता है। इसके बाद ट्विस्ट2 सक्रिय होकर झिल्ली को नरम और लचीला बनाता है, जिससे भ्रूण अंदर समाहित हो सके।

यह प्रक्रिया चूहों, बंदरों और मानव कोशिकाओं में देखी गई, और पाया गया कि यह स्विच सभी प्रजातियों में मौजूद है। निदेशक डॉ. गीतांजलि सचदेवा के अनुसार, इस जैविक बदलाव को समझने से यह स्पष्ट होगा कि कुछ महिलाओं को स्वस्थ भ्रूण होने के बावजूद बार-बार गर्भधारण में विफलता क्यों होती है।

यदि झिल्ली बहुत कम खुलती है, तो भ्रूण अंदर नहीं जा सकता; यदि बहुत खुलती है, तो गर्भावस्था कायम नहीं रह सकती। हॉक्सा10 और ट्विस्ट2 के संतुलन को नियंत्रित करने से भविष्य में IVF की सफलता दर बढ़ सकती है।




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