भारत-अमेरिका आर्थिक रिश्तों का नया दौर


भारत-अमेरिका आर्थिक रिश्तों का नया दौर

डॉ. जयंतिलाल भंडारी

17 फरवरी को भारतीय स्टेट बैंक द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भले ही अमेरिका भारत के उत्पादों पर 15 से 20 प्रतिशत उच्च टैरिफ लगाता है, इसके बावजूद अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात में गिरावट सिर्फ 3 से 3.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान है। वहीं दूसरी ओर, भारत-अमेरिका द्विपक्षीय वार्ता के बाद अब भारत-अमेरिका के आर्थिक रिश्तों का जो नया दौर शुरू होगा, वह भारत के लिए कुल निर्यात बढ़ाने और अन्य वैश्विक कारोबार में लाभकारी साबित होगा।

यह ध्यान देने योग्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच व्हाइट हाउस में हुई द्विपक्षीय वार्ता के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक हाथ से देने और दूसरे हाथ से लेने में सफल रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि द्विपक्षीय वार्ता के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप ने निष्पक्ष, मुक्त और पारस्परिक व्यापार के लिए एक योजना तैयार की है और यह स्पष्ट दिख रहा है कि अमेरिका अब भारत की ओर से बहुत ज्यादा टैरिफ वसूले जाने को सहन नहीं करेगा और व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए रेसिप्रोकल टैरिफ (पारस्परिक समान टैरिफ) से व्यापार पर ध्यान देंगे। ट्रंप ने सभी देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। ट्रंप ने कहा कि जो देश जितना टैरिफ अमेरिका पर लगाते हैं, अमेरिका भी उतना ही टैरिफ लगाएगा।

द्विपक्षीय वार्ता में भारत और अमेरिका दोनों देशों ने व्यापार निवेश, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने पर सहमति जताई है। दोनों देशों ने अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने, व्यापार पर गतिरोध के बीच टैरिफ घटाने, अधिक अमेरिकी तेल, गैस और लड़ाकू विमान की खरीदारी करने के बारे में चर्चा की। दोनों देशों ने द्विपक्षीय वार्ता के दौरान 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका अरबों डॉलर की सैन्य आपूर्ति बढ़ाने के तहत भारत को एफ-35 लड़ाकू विमान देने का रास्ता तैयार कर रहा है। ट्रंप ने यह भी कहा कि भारत और अमेरिका भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEEC) के निर्माण के लिए मिलकर काम करेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप के बीच हुई उत्साहजनक और सकारात्मक द्विपक्षीय वार्ता के बाद, भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ संबंधी चुनौतियों के बावजूद, कारोबार के नए ऐतिहासिक अध्यायों की शुरुआत हो सकती है। चूंकि ट्रंप ने भारत की ओर से अमेरिकी उत्पादों पर अधिक टैरिफ लगाने की शिकायत की है, अब उनकी घोषित रेसिप्रोकल टैरिफ नीति से भारत को भी अधिक टैरिफ वसूली का सामना करना पड़ सकता है। भारत ने पहले ही यह समझ लिया है कि ट्रंप एक हाथ से लेने और दूसरे हाथ से देने में विश्वास रखते हैं। यही कारण है कि भारत ने अपने यहां कुछ अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ कम करना शुरू कर दिया है। एक फरवरी को प्रस्तुत 2025-26 के बजट में भारत ने अमेरिका से आने वाली वस्तुओं जैसे महंगी मोटरसाइकिल, सैटेलाइट के लिए ग्राउंड इंस्टॉलेशन और सिंथेटिक फ्लेवरिंग एसेंस पर शुल्क घटा दिए हैं।

बेशक, ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में वैश्वीकरण की बजाय ‘मेरा अमेरिका पहले’ की नीति को प्राथमिकता दी है, जिससे अमेरिका अपनी आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि एक फरवरी को ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको पर 25% और चीन पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। इसके जवाब में, चीन ने 4 फरवरी को अमेरिका पर 15% टैरिफ लगाने का ऐलान किया, जिससे अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार का एक नया दौर शुरू हो गया है। यह ट्रेड वार भारत के लिए नए अवसर खोल सकता है, लेकिन भारत के सामने द्विपक्षीय वार्ता से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करना भी आवश्यक होगा।

व्हाइट हाउस द्वारा जारी एक फैक्ट शीट के अनुसार, अमेरिका जिन देशों को मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा देता है, उन देशों के कृषि उत्पादों पर औसतन 5% टैरिफ लगता है, लेकिन भारत इन देशों के कृषि उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाता है। ट्रंप दोनों तरफ से समान टैरिफ चाहते हैं। यदि ट्रंप ने उत्पादों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया, तो इसका भारत पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि अमेरिका जो उत्पाद भारत को भेजता है, वही कई उत्पाद भारत अमेरिका को नहीं भेजता। लेकिन अगर अमेरिका सेक्टर के तहत टैरिफ लगाता है, तो कुछ उत्पादों के निर्यात में भारत को कठिनाई हो सकती है, खासकर वस्त्र और कृषि उत्पादों के मामले में, जहां भारत का आयात शुल्क ज्यादा है।

इसके अलावा, अमेरिका ने द्विपक्षीय वार्ता में कहा है कि भारत को अधिक तेल अमेरिका से मंगवाना होगा। फिलहाल, भारत रूस से तेल कम कीमतों पर रूबल में भुगतान करके मंगवाता है, लेकिन अमेरिका से तेल मंगवाने पर डॉलर में भुगतान करना होगा। चूंकि रुपये का मूल्य डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर है, तेल के लिए डॉलर में भुगतान से रुपये की विनिमय दर और घट सकती है।

हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप के बीच 14 फरवरी को हुई द्विपक्षीय वार्ता से जो नई आर्थिक दिशा तय की गई है, उससे भारत-अमेरिका के आर्थिक रिश्तों का नया दौर आगे बढ़ेगा। हम उम्मीद करते हैं कि भारत का उद्योग-कारोबार गुणवत्ता में सुधार करते हुए और लागत कम करते हुए ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ का मुकाबला करने में सफल होगा और 2030 तक दोनों देश 500 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य हासिल करेंगे।

लेखक: डॉ. जयंतिलाल भंडारी (ख्यात अर्थशास्त्री)

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