मध्य प्रदेश में पदोन्नति मामला फिर उलझा, कोर्ट की रोक


फिर लंबे समय के लिए उलझ सकता है पदोन्नति का मामला, सरकार जल्द देगी जवाब

नौ वर्ष बाद सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को पदोन्नति देने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने 'मप्र लोक सेवा पदोन्नति नियम 2025' बनाए, लेकिन यह फिर कानूनी विवादों में उलझ सकते हैं। इससे संभावना बन रही है कि पदोन्नति का मामला एक बार फिर लंबे समय के लिए टल सकता है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर मुख्य पीठ के निर्देश के बाद राज्य सरकार के अधिकारी इसका जवाब बनाने के लिए 7 जुलाई को परेशान रहे। माना जा रहा है कि हाईकोर्ट के अगले निर्देश तक कोई पदोन्नति नहीं होगी।

हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार से पूछा सवाल

राज्य सरकार ने नए नियमों में अनुसूचित जाति और जनजाति को 36 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय किया था, साथ ही मेरिट आधार पर बाकी पदों में भी आरक्षित वर्ग को दोहरा लाभ देने के प्रावधान के चलते सामान्य वर्ग के कर्मचारियों ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने सरकार से पूछा कि वर्ष 2002 और 2025 के नियमों में क्या फर्क है, जिस पर सरकार जवाब नहीं दे सकी।

नए नियम लागू नहीं किए जा सकते

चीफ जस्टिस ने कहा कि ऐसी स्थिति में नए नियमों को लागू नहीं किया जा सकता और पदोन्नति में आरक्षण पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी गई है। अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी, जिसमें सरकार अपना पक्ष मजबूती से रखने की तैयारी कर रही है।

कुछ विभागों में पदोन्नति प्रारंभ भी हो गई थी

मुख्य सचिव ने 31 जुलाई तक सभी विभागों को डीपीसी कर पदोन्नति करने के निर्देश दिए थे। कुछ विभागों में पदोन्नति प्रारंभ भी हो गई थी। करीब चार लाख अधिकारी-कर्मचारियों को पदोन्नति का लाभ मिलना है, जबकि 2016 के बाद से एक लाख कर्मचारी बिना पदोन्नति सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

सरकार को देना होगा स्पष्ट जवाब

पदोन्नति का मामला उलझ गया है। सरकार ने नियम बनाए हैं तो उसे तत्काल कोर्ट को जवाब प्रस्तुत करना चाहिए। कोर्ट को 2002 और 2025 के नियमों में फर्क स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए। कर्मचारियों को पहले ही पदोन्नति न मिलने से बड़ा नुकसान हुआ है।

संविधान और सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या महत्वपूर्ण

राजनेताओं को नियम बनाने से पहले संविधान की संरचना और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की व्याख्या को ध्यान में रखना चाहिए। इससे समाज में संतुलन बना रहता है और योग्यता को भी सम्मान मिलता है। अफसरशाही की त्रुटियां ही कई बार नियमों को कानूनी उलझन में डाल देती हैं।

एम नागराज मामला और क्रीमीलेयर की अनदेखी

सरकार ने एम नागराज केस का पालन नहीं किया और पुराने निरस्त नियमों को फिर से बना दिया। क्रीमीलेयर लागू नहीं किया गया, न ही कोई डाटा एकत्र किया गया। इससे कई विसंगतियाँ सामने आई हैं। कई बार जूनियर पदोन्नत होकर सीनियर के ऊपर आ जाते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें रोका जाता है। सरकार ने ऐसी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं की है।

कोर्ट ने माना प्रथम दृष्टया त्रुटियाँ हैं

कोर्ट ने प्रथम दृष्टया पदोन्नति नियमों में कमी मानी है, और तुलनात्मक चार्ट बनाने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई तक किसी भी तरह की पदोन्नति प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई है।

निष्कर्ष

सरकार को चाहिए कि नए नियमों में जो भी विसंगतियाँ हैं, उन्हें ठीक करे और सभी वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करे। न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास बना रहे, इसके लिए पारदर्शी और संविधान सम्मत नीति जरूरी है।




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