ट्रंप का नया कार्यकाल भारत के लिए मौका -डॉ.जयंतीलाल भंडारी
20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47 वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद अपने पहले संबोधन में कहा कि अब अमेरिका का स्वर्णिम दौर शुरू हो रहा है। अमेरिका फिर से अमीर देश बनेगा। अमेरिका फिर से मैन्युफैक्चरिंग हब बनेगा और अमेरिकी नागरिकों को समृद्ध बनाने के लिए दूसरे देशों के उत्पादों पर टैक्स और टैरीफ बढ़ाए जाएंगे। ट्रंप के नए कार्यकाल में उनकी नई आर्थिक रणनीति उभर कर दिखाई दे रही है । गौरतलब है कि शपथ ग्रहण करने के बाद ट्रंप ने नए आर्थिक फैसले लेते हुए कहा कि यदि ग्लोबल ट्रेड में ब्रिक्स देशों के द्वारा डॉलर का इस्तेमाल घटाया जाएगा तो ब्रिक्स देशों पर 100 फीसदी ट्रेरिफ लगाया जाएगा। ट्रंप ने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़े। ट्रंप इस बार दोगुने आर्थिक ताकतवर राष्ट्रपति दिखाई दे रहे हैं । ट्रंप ने पहले भी उनके संबोधनों में स्पष्ट संकेत दिया है कि उनकी नई आर्थिक रणनीति में जहाँ समृद्ध अमेरिका के सपने को साकार करने के लिए आयात शुल्कों को बढ़ाना शामिल है, वहीं बदलती हुई दुनिया में उथलपुथल मचाते हुए अमेरिका को चुनौती दे रहे चीन के आर्थिक दबदबे को कारोबारी प्रतिबंधों व ऊँचे शुल्कों से नियंत्रित करना भी शामिल है। ट्रंप ने सबसे पहले चीन, कनाडा, मैक्सिको सहित उन शीर्ष पांच-छह देशों पर ऊंचे आयात शुल्क लगाने का संकेत दिया है, जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा सबसे अधिक है। इन देशों पर कड़े आर्थिक फैसले भारत के लिए फायदेमंद होंगे। चूँकि ट्रंप ने भारत को भी कुछ उत्पादों के लिए अधिक आयात शुल्क वाला देश कहा है, ऐसे में भारत के द्वारा अमेरिका के व्यापक हित में कुछ उत्पादों से शुल्क घटाए जाने से भारत को अमेरिका में निर्यात के अधिक मौके प्राप्त होंगे। भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी ने कहा है कि ट्रंप के आगमन से भारत और अमेरिका के आर्थिक रिश्ते और अधिक मजबूत होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप को शपथ ग्रहण करने के बाद बधाई देते हुए एक दूसरे के हित में मिलकर काम करने का संदेश दिया है। ऐसे में ट्रंप की आर्थिक चुनौतियों के बीच भी भारत के लिए आर्थिक मौके उभर कर दिखाई दे रहे हैं।
निसंदेह ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में वैश्वीकरण की जगह ‘मेरा अमेरिका प्रथम’ की धारणा को उच्च प्राथमिकता देते हुए परस्पर निर्भर अर्थव्यवस्थाओं की जगह अमेरिका की आत्म निर्भरता और आर्थिक मजबूती की ओर बढ़ने का संकेत दिया है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व स्तर पर जो आर्थिक–कारोबारी नियम, समझौते और सहकारी एजेंडे बनाए गए थे, वे सब इस समय ध्वस्त होते हुए दिखाई दे रहे हैं। खासतौर से चीन ने स्वीकार्य वैश्विक कारोबारी नियमों का पालन नहीं किया है। चीन ने न केवल रणनीतिक रूप से पश्चिम का औद्योगीकरण समाप्त करने काम किया है, बल्कि उसने पश्चिम की कई नई तकनीकें भी चुराई हैं। इनके दम पर चीन का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है। 2024 में अमेरिका का सबसे ज्यादा व्यापार घाटा चीन से रहा है। स्थिति यह है कि वर्ष 2030 तक चीन का विनिर्माण क्षेत्र समूचे पश्चिम के विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में अधिक हो जाने का अनुमान है। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले माह दिसंबर 2024 में चीन की सालाना सेंट्रल इकानॉमिक वर्क कॉन्फ्रेंस (सीईडब्ल्यूसी) में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने की चुनौती से निर्मित कुछ उल्लेखनीय बिंदुओं पर चर्चा करते हुए अमेरिका से मुकाबले की नई आर्थिक रणनीति बनाई गई। इसके तहत चीन में मांग में ठहराव, बिगड़ती बाहरी आर्थिक चुनौतियों और चीनी अर्थव्यवस्था में लगातार की बात स्वीकार करते हुए अधिक बड़े आर्थिक प्रोत्साहन का रास्ता चुना गया है। ‘उदार मौद्रिक नीति’ पर रजामंदी बन गई है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ट्रंप के नए कार्यकाल के मद्देनजर अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने अनुमान जताया है कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति ट्रंप से चीन को भारी नुकसान हो सकता है और भारत समेत आसियान देशों को फायदा होगा। मूडीज रेटिंग्स का कहना है कि अमेरिका-चीन के बीच बढ़ते तनाव और रणनीतिक क्षेत्रों में संभावित निवेश प्रतिबंधों के कारण भारत और अन्य एशियाई देशों को लाभ मिलने की उम्मीद है। कहा गया है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में, व्यापार और निवेश प्रवाह चीन से और दूर हो सकता है, क्योंकि अमेरिका रणनीतिक क्षेत्रों में निवेश को सख्त कर रहा है, जिसका चीन की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसी प्रकार हाल ही में प्रकाशित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की शोध इकाई की नई अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति ट्रंप की आर्थिक नीतियों से यद्यपि भारत भी अप्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगा, लेकिन दीर्घावधि में इन नीतियों का भारत पर सकारात्मक असर ही होगा। भारत के आर्थिक मौके बढ़ेंगे और खासतौर से ट्रंप के बाद अब भारत का रुपया लगातार मजबूत होते हुए दिखाई देगा।
विदेश व्यापार विशेषज्ञों के मुताबिक ट्रंप की नीति से भारत के शेयर बाजार में और मजबूती आ सकती है। चीन में मैन्यूफैक्चरिंग करने वाली कई विदेशी कंपनियां भी भारत का रुख कर सकती है। भारत को अब तक चीन प्लस वन रणनीति अपनाने में अब तक सीमित फायदा ही मिला है, ट्रंप के नए कार्यकाल में यह फायदा बढ़ते हुए दिखाई दे सकेगा। ट्रंप के नए कार्यकाल की शुरुआत में ही भारत अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को अंतिम रूप देकर लागू किए जाने की संभावना है। इससे भारत-अमेरिका व्यापार बढ़ेगा भारत अमेरिका में निर्यात बढ़ाते हुए वैश्विक आपूर्तिकर्ता देश के रूप में भी आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे सकेगा। इन सबके साथ-साथ मोदी और ट्रंप के बीच हाउडी मोदी से नमस्ते ट्रंप तक के मित्रता के बहुआयामी अध्याय भारत-अमेरिका व्यापार को बढ़ाने में मददगार होंगे।
वैश्विक अर्थविशेषज्ञों का यह भी मत है कि भारत और अमेरिका के बीच लगातार बढ़ता हुआ व्यापार ट्रंप के नए कार्यकाल में और बढ़ना संभावित है। वित्त वर्ष 2023-24 में करीब 120 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। वर्ष 2024 में जनवरी से जून 2024 के बीच अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनने के साथ-साथ भारत के लिए अमेरिका निर्यात के लिए सबसे बड़े बाजार सबसे प्रमुख निर्यात के रूप में रेखांकित हो रहा है। पिछले वर्ष भी अमेरिका के साथ व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में रहा है और यह अधिशेष 35.3 अरब डॉलर स्तर पर है। विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (आरआईएस) सहित अन्य नई अध्ययन रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि ट्रंप के नए कार्यकाल में भारत के लिए चुनौतियों के बीच मौके दिखाई दे रहे हैं। ट्रंप के पहले शासन काल में भारत चीन के खिलाफ सख्ती का फायदा नहीं उठा सका था। ऐसे में ट्रंप द्वारा अमेरिकी प्रशासन की बागडोर संभालने के बाद भारत को ऐसी बहुआयामी रणनीति पर आगे बढ़ना होगा, जिससे एक ओर अमेरिका में निर्यात बढ़ सके, वहीं दूसरी ओर वैश्विक निर्यात में भी तेज बढ़त मिल सके।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि जिन क्षेत्रों में चीन अमेरिका को प्रमुखता से निर्यात करता है, उनमे से कई क्षेत्रों में भारत अपना निर्यात सरलता से बढ़ा सकता है। इन क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल उपकरण, मोबाइल फोन, फुटवीयर, टेक्सटाइल और गार्मेंट्स, फर्नीचर और घर के सजावटी सामान, वाहनों के कल पुर्जे, खिलौने और रसायन आदि शामिल हैं। इसके लिए जरूरी होगा कि भारतीय निर्यातकों को अमेरिका बाजार में पहुँच बढ़ाने के लिए भारतीय. निर्यातकों के संगठन के द्वारा विशेष रूप से सुझाई गई। मार्केटिंग योजना को मंजूरी दी जाना लाभप्रद होगी। मार्केटिंग प्रोत्साहन से निर्यातकों को अमेरिका के विभिन्न भागों में आयोजित प्रदर्शनियों में शामिल होने और अमेरिका में निर्यात योग्य नए उभरते क्षेत्रों की संभावनाओं का दोहन करने में मदद मिलेगी।
हम उम्मीद करें कि अब जब डोनॉल्ड ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल में अमेरिका को नए सिरे से गढ़ने के लिए चीन कनाडा व मैक्सिको पर अधिकतम शुल्क लगाने के साथ-साथ भारत के भी कुछ उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने का संकेत दिया है, तब भारत के द्वारा अमेरिका के व्यापक हित वाले उत्पादों पर शुल्क में उपयुक्त कमी की रणनीति के साथ आगे बढ़ना लाभप्रद होगा। ऐसे में अमेरिका को अधिक निर्यात बढ़ाने और चीन प्लस वन के मद्देनजर वैश्विक स्तर पर अधिक निर्यात के मौके भारत की मुठ्ठी में आते हुए दिखाई दे सकेगे। हम उम्मीद करें कि ट्रंप के द्वारा जो नई आर्थिक इबारत लिखी जाएगी, उससे भारत-अमेरिका के आर्थिक रिश्तों का नया दौर आगे बढ़ेगा और अमेरिका के साथ मजबूत आर्थिक रिश्ते भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने के लक्ष्य को पूरा करने में भी मददगार साबित होंगे।
(लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।) डॉ. जयंतीलाल भंडारी-111, गुमास्ता नगर, इंदौर-9 मो. 9425478705 (फोन- 0731 2482060, 2480090)