आज नृत्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं रह गया है । नृत्य के अनेक रूप और प्रभाव अब सामने आ रहे हैं । नृत्य का एक ऐसा ही रूप है- नृत्य थैरेपी । इसमें नृत्य के माध्यम से लोगों की बीमारियों को दूर किया जाता है । नृत्य की एक विधा है- शास्त्रीय नृत्य जिसके अंतर्गत भरतनाट्यम, ओडिसी, कथकली आदि शैलियाँ आती हैं । इन नृत्यों की अलग-अलग भाव-भंगिमाओं से शरीर को स्वस्थ किया जाता है। इसे ही नृत्य थैरेपी कहते हैं। एक नृत्य थैरेपिस्ट अस्वस्थ व्यक्ति को नृत्य के द्वारा स्वस्थ करता है। नृत्य थेरेपिस्ट एक ऐसा डॉक्टर होता है जो दवाई और इंजेक्शन के स्थान पर नृत्य की खुराक अपने मरीज को देकर स्वस्थ करता है। जो व्यक्ति दवाइयाँ खा-खाकर थक चुके हैं और बिना दवाइयों के पूर्ण स्वस्थ होना चाहते हैं, उनके लिए नृत्य थेरेपी एक वरदान का काम करती है। नृत्य थेरेपिस्ट बनाने के लिए दृढ़़ संकल्प, लोगों की मदद करने की भावना के साथ शारीरिक क्षमता भी होनी चाहिए। पीठ मजबूत, पाँव सधे हुए तथा संगीत की लय के साथ लचक पैदा करने वाला एवं हल्का शरीर होना आवश्यक है। पुरुष नर्तक का ऊँचे कद का होना सोने पे सुहागा होता है। नृत्य थेरेपी विशेषज्ञ बनने के लिए नृत्य में स्नातक डिग्री लेना आवश्यक है । नृत्य में स्नातक डिग्री के लिए नृत्य की जानकारी के साथ 12वीं कक्षा में नृत्य एक विषय के रूप में रहा होना चाहिए। नृत्य थेरेपी एक नया विषय है जिसमें करियर बनाने की अपार संभावनाएँ हैं । नृत्य थेरेपी विशेषज्ञ स्वास्थ्य केंद्रों में नृत्य थेरेपिस्ट विशेषज्ञ का पद ग्रहण कर सकते हैं। अस्थि विकलांग केंद्रों में नृत्य थेरेपिस्टों की माँग बहुत ज्यादा है। अपना स्वास्थ केंद्र खोलकर आगे बढ़़ा जा सकता है। आज विदेशों में भी भारतीय पद्धतियों से इलाज कराया जाता है। ऐसे में नृत्य थेरेपिस्ट विशेषज्ञों की माँग विदेशों में भी तेजी से बढ़़ रही है । नृत्य थेरेपी से संबंधित विभिन्न पाठ्यक्र्रम निम्न संस्थानों में उपलब्ध हैं- श्रीराम भारतीय कला केंद्र, कॉपरनिकस मार्ग, नई दिल्ली-01। गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ म्यूजिक एंड डांस, सिकंदराबाद, आंध्रप्रदेश। मैसूर विश्वविद्यालय,फैकल्टी ऑफ आटर्स, मैसूर, कर्नाटक। राजस्थान संगीत संस्थान, जयपुर, राजस्थान । कथक केंद्र, बहावलपुर हाउस, भगवादनास रोड, नई दिल्ली। एम. एस. विश्वविद्यालय, बडौदा, गुजरात ।