कला को इतिहास का आईना कहा जाता है लेकिन कलाकृतियों पर समय का प्रभाव पड़ता है । समय बीतने के साथ प्राकृतिक शक्तियों यथा हवा, पानी, धूल के कण आदि कलाकृतियों को नुकसान पहुँचाते हैं । कभी-कभी मानव जनित दुर्घटनाओं में भी इन अमूल्य कृतियों के नष्ट होने का खतरा रहता है । प्रदूषण भी स्मारकों, कला शिल्पों को नुकसान पहुँचाता है । कलाकृतियों, स्मारकों, शिल्पों को लम्बे समय तक संरक्षित रखने की आवश्यकता ने ही कला संरक्षण को एक कैरियर विकल्प के रूप में जन्म दिया है । कलाकृतियाँ समय के साथ अपना असर खोने लगती हैं । इसके अन्दर खराबी आनी शुरू होती है, जैसे रंग फीका होना, दरार आना आदि । कला संरक्षक मुख्यत: ऐसी ही खामियों को दूर करके उसकी जीवंतता बनाए रखने की कोशिश करता है । कला संरक्षण में कैरियर बनाने के लिए चीजों को तेजी से भांपने वाली नजर, संवेदनशील दृष्टिकोण, धैर्य, जिम्मेदारी का एहसास, लम्बे समय तक काम करने की क्षमता, कला के प्रति सम्मान के साथ-साथ वैज्ञानिक समझ आवश्यक है । कला संरक्षक का प्रशिक्षित होना अनिवार्य होता है क्योंकि बिना प्रशिक्षण के कला संरक्षकों से अमूल्य कलाशिल्प नष्ट भी हो सकता है । कला संरक्षण के स्नातकोत्तर डिप्लोमा और स्नातकोत्तर डिग्री पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं । इन पाठ्यक्रमों के तहत कार्बनिक और अकार्बनिक रसायन, पेंटिंग एवं कला-तकनीकों की जानकारी दी जाती है । स्नातक की डिग्री प्राप्त युवा यह पाठ्यक्रम कर सकते हैं । कला संरक्षण के प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र निम्न हैं- 1. नेशनल म्यूजियम इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्ट्री ऑफ आर्ट कंजर्वेशन एंड म्यूजोलॉजी नेशनल म्यूजियम, जनपथ, नई दिल्ली । 2. अन्नामलाई विश्वविद्यालय, अन्नामलाई नगर, दक्षिणी अरकोट, चेन्नई । 3. आईएनटीएसीएच इंडियन कंजर्वेशन इंस्टीट्यूट ए- 1/11, सेक्टर बी. अलीगंज स्कीम लखनऊ- 226020 ।