प्लांट पैथोलॉजी (पादप रोग विज्ञान) कृषि विज्ञान की एक शाखा है जिसके अंतर्गत बेक्टीरिया, वायरस, फंगस तथा अन्य पौधों में रोग पैदा करने वाले रोगाणुओं का अध्ययन किया जाता है। प्लांट पैथोलॉजी में इस बात को समझने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है कि किस प्रकार से परपोषी, रोगजनक और पर्यावरण मिलकर पौधों में रोग पैदा करने का कारण बनते हैं तथा यह समझने पर भी जोर दिया जाता है कि पादप रोगों पर नियंत्रण किस प्रकार किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में कृषि और वानिकी में कीटों की समस्या बहुत गंभीर मामला है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में फसल नुकसान करीब 35 प्रतिशत है जिसमें से करीब 12 प्रतिशत हानि कीटों और कुटकी से, 12 प्रतिशत पादप रोगजनकों से, 10 प्रतिशत खरपतवारों की वजह से और 1 प्रतिशत पशु एवं पक्षियों के कारण होती है। इसी नुकसान को देखते हुए कीटों का प्रभावी नियंत्रण बहुत आवश्यक है। पौधों को स्वस्थ रखने के लिए उन अवयवों तथा कारणों की समझ होना आवश्यक है, जो रोग का कारण बनते हैं। साथ ही यह समझ होना भी जरूरी है कि पौधे किस प्रकार उगते हैं तथा किस प्रकार रोगों से प्रभावित होते हैं। यह समझ प्लांट पैथोलॉजी के पाठ्यक्रमों द्वारा उत्पन्न की जाती है। पादप रोगों को परपोषी पौधों, रोगजनकों या पर्यावरण में परिवर्तन लाकर प्रबंधित किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर इनमें प्रतिरोधी पौधा किस्में उगाना, रोगजनक मुक्त बीजों का रोपण, जैविक नियंत्रण फार्मूला लागू करना, रोगों में कमी लाने के लिए पर्यावरणीय स्थितियों में सुधार करना तथा ऐसी पौधा औषधियों का प्रयोग करना शामिल है, जो कि पौधे या पर्यावरण को बगैर कोई नुकसान पहुँचाए रोगजनकों को नष्टï या मार देती है। गौरतलब है कि प्लांट पैथोलॉजिस्ट अपने कामकाज के दौरान फसलों और उनके रोगों के प्रबंधन के लिए समन्वित, पर्यावरणीय दृष्टिïकोण से सुदृढ़ तरीके विकसित करने के लिए पादप प्रजनकों और फसल प्रबंधन, कीट और खरपतवार विशेषज्ञों के साथ मिलकर कार्य करता है। अन्य विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम करने से प्लांट पैथोलॉजिस्ट एक मजबूत अर्थव्यवस्था, सुरक्षित खाद्य पदार्थों, स्वच्छ पर्यावरण, मृदा एवं जल संरक्षण और फार्मों, बागानों आदि में कामगारों के स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। भारत के सभी कृषि विश्वविद्यालयों में स्नातक स्तर पर प्लांट पैथोलॉजी एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। कुछ विश्वविद्यालय स्नातक पूर्व और स्नातकोत्तर दोनों स्तरों पर पादप रोग विज्ञान में विशेषीकृत पाठ्यक्रम संचालित कर रहे हैं। प्लांट पैथोलॉजी के स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने हेतु बारहवीं स्तर तक विज्ञान (जीव विज्ञान समूह) या कृषि विज्ञान विषय होना आवश्यक है। स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए संबंधित क्षेत्र में डिग्री पाठ्यक्रम जरूरी है। इस क्षेत्र में पीएचडी पाठ्यक्रम भी उपलब्ध है। जहाँ तक प्लांट पैथोलॉजी में रोजगार के अवसरों की बात की जाए तो प्लांट पैथोलॉजी का कोर्स करने के उपरांत युवा सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र तथा स्वरोजगार से जुड़ सकते हैं। इसमें आगे अध्ययन की व्यापक संभावनाएँ हैं। इस क्षेत्र में डॉक्टरेट डिग्री करने के उपरांत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षक या वैज्ञानिक के रूप में उजले अवसर हैं। उम्मीदवार पादप संरक्षण की सरकार द्वारा संचालित विभिन्न परियोजनाओं में शोध कार्य के लिए जूनियर रिसर्च फैलो के रूप में जुड़ सकते हैं। इस प्रकार देखा जाए तो इस क्षेत्र में रोजगार की चमकीली संभावनाएँ हैं। प्लांट पैथोलॉजी का कोर्स कराने वाले देश के प्रमुख संस्थान इस प्रकार हैं- जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर । भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली । राष्ट्रीय पादप संरक्षण प्रशिक्षण संस्थान, हैदराबाद। चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार । आणंद कृषि विश्वविद्यालय, आणंद, गुजरात। कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु। चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर ।