वर्ष 1999 में आए सुपर साइक्लोन के बाद सबसे खतरनाक तूफान माना जा रहा फैनी 3 मई, 2019 को भारत के ओडिशा के पुरी तट से टकराया था। आपदा के खतरों से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एजेंसी ओडीआरआर ने फैनी तूफान से पहले तैयारियों को लेकर भारत की तारीफ की है तथा कहा है कि भारत की जीरो कैजुएलिटी पॉलिसी और भारतीय मौसम विभाग की सटीक भविष्यवाणी की बदौलत ही समय रहते 11 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचा दिया गया और फैनी तूफान से मौतों की संख्या बहुत कम रही। इसी बात से समझा जा सकता है कि मौसम की सटीक भविष्यवाणी कितनी आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि सूचना क्रांति की वजह से सिमटती हुई दुनिया में मौसम विज्ञान का अध्ययन आपको एक बेहतरीन करियर की डगर पर आगे बढ़ा सकता है। आज की भाग-दौड़ वाली जिंदगी में मौसम की जानकारी होना वास्तव में बहुत फायदे की बात है। यही वजह है कि यह जानकारी देने के लिए न केवल मीडिया ने अलग से प्रबंध किए हैं, बल्कि कई इंटरनेट वेबसाइट्स भी मौसम से संबंधित जानकारियाँ प्रदान करती हैं। जाहिर तौर पर इन सबका स्रोत मौसम विज्ञान या मेटिओरोलॉजी है। मौसम विज्ञान के तहत मौसम की भविष्यवाणी सहित वातावरण की विभिन्न गतिविधियाँ व उनके कार्यकलापों का अध्ययन किया जाता है। इन दिनों नवीनतम कम्प्यूटर व सुपर कम्प्यूटर की मदद से मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाया जाता है। भारतीय मौसम विभाग देशभर में फैले अपने सैकड़ों केंद्रों के बड़े नेटवर्क की सहायता से मौसम संबंधी आंकड़े इकट्ठा कर एवं उनका विश्लेषण करके, हमें मौसम के बदलते मिजाज से अवगत कराता है। इसके अंतर्गत प्रकृति में हो रहे परिवर्तनों का अध्ययन व आकलन किया जाता है। मौसम विभाग पूर्वानुमान के जरिए परिवहन, दूरसंचार, रक्षा तथा विमानन क्षेत्र हेतु मौसम की संबंधित सूचनाएँ उपलब्ध कराता है। मौसम विज्ञान की कई शाखाएँ हैं जिनमें से किसी में भी अध्ययन कर अच्छा एवं उज्जवल करियर बनाया जा सकता है- क्लाइमेटोलॉजी, साइनोप्टिक मैटिओरोलॉजी, डायनेमिक मेटिओरोलॉजी, फिजिकल मेटिओरोलॉजी एग्रीकल्चरल मेटिओरोलॉजी व अप्लाइड मेटिओरोलॉजी। जो युवा मौसम विज्ञान में डिप्लोमा-स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम करना चाहते हैं, उनके पास भौतिकी एवं गणित विषयों के साथ स्नातक डिग्री होना जरूरी है। मौसम विज्ञान पाठ्यक्रमों में उम्मीदवारों का चयन सामान्यत: प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होता है। यह परीक्षा अखिल भारतीय स्तर की होती है जिसमें मेरिट के आधार पर विद्यार्थियों को विभिन्न राज्यों के कॉलेजों- विश्वविद्यालयों में प्रवेश दिया जाता है। देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर स्तर पर मौसम विज्ञान पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। इसके अलावा आईआईटी भी मौसम विज्ञान में पीएचडी तथा अन्य उच्च स्तरीय पाठ्यक्रम संचलित करती है। कई विश्वविद्यालय विज्ञान (गणित) स्नातकों के लिए मौसम विज्ञान में एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित करते हैं। वर्तमान में एग्रीकल्चरल मेटिओरोलॉजी (कृषि मौसम विज्ञान)के क्षेत्र में रोजगार के असीमित अवसर हैं। कृषि मौसम विज्ञान अनुप्रयुक्त मौसम विज्ञान की एक शाखा है, जिसके अंतर्गत फसल पालन और पशु पालन पर मौसम के विभिन्न प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। इसका संबंध उपरोक्त क्षेत्रों के वातावरण की भौतिक प्रक्रियाओं के साथ है, जिसका दोहन स्थायी कृषि उत्पादन से संबंधित समस्याओं का समाधान करने में किया जाता है। कृषि मौसम वैज्ञानिकों को मृदा, जल, मौसम फसलों और कृषि से संबंधित मौसम वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रशिक्षण दिया जाता है। कृषि मौसम विज्ञान क्षेत्र में निम्न बातों का अध्ययन किया जाता है- प्रभावकारी फसल उत्पादन के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र के संसाधनों का जलवायु विषयक अध्ययन, मौसम आधारित प्रभावकारी कृषि कार्य विकसित करना, विभिन्न मौसम पूर्वानुमानों और जलवायु पूर्वानुमानों का उपयोग करते हुए स्थायी फसल पैदावार सुनिश्चित करने के लिए मौसम आधारित कृषि परामर्श संगठनों का विकास करना सभी प्रमुख फसलों और पूर्वानुमानों में फसल-मौसम संबंध का अध्ययन करना, मौसम संबंधी मानदंडों और फसल कीटों तथा बीमारी, संक्रमणों के बीच संबंध कायम करना, कृषि उत्पादकता बढ़ाने और मौसम से इतर फसलें उगाने के लिए विभिन्न तरीकों से सूक्ष्म जलवायु में परिवर्तन करना, कृषि के स्थायी विकास में सहायक प्रभावकारी एवं तीव्र प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए कृषि जलवायु तुल्यरूपों को परिभाषित करने के वास्ते कृषि जलवायु क्षेत्रों का निर्धारण करना, विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में पैदावार क्षमता हासिल करने का मूल्यांकन करने के लिए फसल वृद्धि उत्प्रेरक मॉडल विकसित करना, प्रभावकारी सूखा प्रबंधन के लिए सूखे का फसलवार एवं क्षेत्रवार अध्ययन करना। भारतीय मौसम विज्ञान में इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के लिए सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर हैं। इसके अलावा लोक निर्माण विभाग, विद्युत, डाकतार विभाग व रेलवे जैसे कुछ सार्वजानिक उपक्रमों में भी मौसम विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है। साथ ही सशस्त्र सेना, नौसेना व वायु सेना में भी मौसम संबंधित जानकारी के लिए मौसम वैज्ञानिकों की जरूरत होती है। इसके अलावा ऐसे कई व्यापार हैं, जो अपने ज्यादातर निर्णय मौसम के आधार पर लेते हैं, वे भी मौसम वैज्ञानिकों की नियमित भर्ती करते हैं। कृषि मौसम वैज्ञानिक निजी और सरकारी एजेंसियों में अनुसंधान और विकास गतिविधियों में काम कर सकते हैं। इन एजेंसियों के अंतर्गत केंद्रीय और राज्य कृषि विश्वविद्यालय,भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद,भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, राष्ट्रीय दूरसंवेदन एजेंसी, विज्ञान और प्रोद्योगिकी विभाग, खाद्य और कृषि संगठन आदि शामिल हैं। निजी क्षेत्र के अंतर्गत कृषि मौसम वैज्ञानिक जल संभर प्रबंधन, कमान क्षेत्र और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लगे स्वैच्छिक संगठनों सहित अनेक संगठनों में सलाहकार के रूप में काम कर सकते हैं सरकारी क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार के अवसरों के अंतर्गत शिक्षण अनुसंधान और विकास एवं विस्तार गतिविधियों में वैज्ञानिक, सहायक प्रोफेसर, अनुसंधान अधिकारी, विषय संबंधी विशेषज्ञों और कृषि मौसम वैज्ञानिकों के रूप में रोजगार प्राप्त किया जा सकता है। ये पद विभिन्न विश्वविद्यालयों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों,कृषि विज्ञान केंद्रों, आईसीएआर, विज्ञान और प्रोद्यौगिकी विभाग आदि जो उच्चस्तरीय अनुसंधान, विकासात्मक विस्तार, परामर्श सेवाओं, आयोजन और नीति निर्माण गतिविधियों से संबद्ध हैं में उपलब्ध हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में मेटिओरोलॉजिस्ट (मौसम वैज्ञानिकों) की माँग में भारी वृद्धि होगी। मौसम विज्ञान से संबंधित विभिन्न पाठ्यक्रम जिन संस्थानों में उपलब्ध हैं, वे हैं- जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (मध्यप्रदेश)। इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)। सेंटर फॉर एटमासफियर एंड ओसेनिक साइंस, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस,बैंगलुरू (कर्नाटक)। कोचीन विश्वविद्यालय, कोच्चि (केरल)। शिवाजी विश्वविद्यालय, विद्यानगर, कोल्हापुर (महाराष्ट्र)। आणंद कृषि विश्वविद्यालय, आणंद (गुजरात)। सीसीएस हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा)। गोविंद बल्लभपंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर(उत्तरप्रदेश)।