भारत को गाँवों का देश कहा जाता है । देश और दुनिया की जानी-मानी कंपनियाँ भी अब यह महसूस करने लगी हैं कि भारतीय ग्रामीण बाजार काफी बड़ा है और इसमें कारोबार की तमाम उजली संभावनाएँ मौजूद हैं, जिनका लाभ उठाया जाना अभी बाकी है। मामला चाहे गाँवों में उद्योग लगाने का हो, वस्तुएँ अथवा सेवाएँ बेचने का हो या फिर गाँवों के लिए नई प्रौद्योगिकी विकसित करने का, सभी में इन दिनों चहल-पहल देखने को मिल रही है। गाँवों और ग्रामीण बाजार पर इस नए फोकस से कॅरियर के नए अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। यही कारण है कि ग्रामीण प्रबंधन एवं मार्केटिंग के जानकारों की इन दिनों भारी माँग है। गाँवों की जरूरतें शहरों जैसी नहीं हैं इसलिए इन इलाकों के लिए योजना एवं नीतियाँ तैयार करने में उनकी विशिष्टïताओं का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। अत: यह विशेषता का क्षेत्र है और इन विशेषताओं को हासिल कर कॅरियर के बहुत से दरवाजे खुल जाते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ गाँवों में अपने उत्पादनों की बिक्री बढ़ाने की जबरदस्त कोशिश कर रही हैं। आईटीसी ने देश के अलग-अलग हिस्सों के ग्रामीण इलाकों में ई-चौपाल खोलकर जिस प्रयोग को शुरू किया था उसकी सफलता से हम सभी परिचित हैं। अच्छे संस्थान से ग्रामीण प्रबंधन या संबंधित पाठ्यक्रम पूरा करने वाले विद्यार्थियों को कैंपस प्लेसमेंट आसानी से मिलने लगा है और यदि वे महत्वाकांक्षी हैं तो आगे चलकर उच्च स्तरीय कॅरियर भी अपना सकते हैं। रूरल मैनेजमेंट का कोर्स स्नातक के उपरांत किया जा सकता है। रूरल मैनेजमेंट का कोर्स कराने वाले प्रमुख संस्थान इस प्रकार हैं- इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आणंद, गुजरात। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद/ लखनऊ। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, जयपुर। गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद। जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, रांची। जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एक्शन एंड स्टडीज, जबलपुर। नरसी मोनजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, मुंबई। आर.ए. पोद्दार इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, जयपुर।