स्कॉलिस्टिक असेसमेंट टेस्ट (सैट) के जरिए अमेरिका के कई कॉलेजों में प्रवेश मिलता है। भारत से हर साल करीब 50 हजार छात्र यह परीक्षा देते हैं। यह परीक्षा अमेरिका की संस्था कॉलेज बोर्ड कराती है जिसकी देखरेख एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विस करती है। सैट की शुरूआत 1901 से हुई है। सैट के अलावा सैट सब्जेक्ट टेस्ट भी होते हैं। यह टेस्ट आप अपने पसंदीदा विषय में दे सकते हैं। कॉलेज एडमिशन प्रोसेस के दौरान सब्जेक्ट टेस्ट के जरिए आप अपनी एकेडमिक क्वालिफिकेशन को औरों से हटकर पेश कर सकते हैं। सैट सब्जेक्ट टेस्ट 20 विषयों में होते हैं, जो इंग्लिश, हिस्ट्री, मैथ्स आदि से संबंधित होते हैं। सैट स्कोर के जरिए प्रवेश देने वाली यूनिवर्सिटीज परसेंटाइल स्कोरिंग सिस्टम इस्तेमाल करती हैं। इस सिस्टम से तय होता है कि किसी यूनिवर्सिटी में आपको निश्चित तौर पर प्रवेश मिलेगा या नहीं। प्रत्येक यूनिवर्सिटी अप्लाय करने वाले छात्रों के स्कोर को तीन हिस्सों में विभाजित कर कट ऑफ तय करती है। अप्लाय करने वालों में से ऐसे 25 फीसदी छात्र जिन्हें एवरेज स्कोर से भी ज्यादा स्कोर मिला है, यानी टॉप-25 परसेंटाइल, इन छात्रों को उस यूनिवर्सिटी में निश्चित तौर पर एडमिशन मिल सकता है, वे सिक्योर हैं। ऐसे 25 फीसदी छात्र जिन्हें मिनिमम स्कोर ही आ पाया है, मतलब बॉटम 25 परसेंटाइल स्कोर यानी उनकी पहुँच (रीच) उस यूनिवर्सिटी तक तो है, लेकिन हो सकता है कट ऑफ इससे ज्यादा हो जाए और वहाँ सीट न मिले। ऐसे में किसी दूसरी यूनिवर्सिटी की ओर रूख कर लें, जिसमें वे सिक्योर कैटेगरी में आ जाएँ। टॉप और बॉटम 25 परसेंटाइल के बीच का स्कोर पाने वाले छात्र, जिन्हें स्कोरिंग के आधार पर सीट मिल जाएगी (मैच) परंतु यह जरूरी नहीं कि पसंदीदा कोर्स भी मिले। यह टेस्ट अन्य प्रवेश परीक्षाओं की तर्ज पर छात्रों का लॉजिक एप्टिट्यूट या रीजनिंग नहीं अपितु स्किल्स तथा एप्लिकेशन नॉलेज के स्तर पर स्कोरिंग करता है। बाकी परीक्षाओं में तो कॉलेज तय करते हैं कि किस छात्र को प्रवेश मिल सकेगा। लेकिन सैट स्कोर आने के बाद, हर कॉलेज अपनी स्कोर रेंज बताता है। ऐसे में छात्र खुद तय कर सकते हैं कि वे सिक्योर, मैच या रीच कैटेगरी वाले कॉलेज में से किसमें प्रवेश लेंगे।