18 राज्य 1 लाख करोड़ रुपये खर्च करेंगे लाड़ली बहना जैसी योजनाओं पर
देशभर के 18 राज्य, जिसमें मध्यप्रदेश भी शामिल है, लाड़ली बहना योजना जैसी कल्याणकारी योजनाओं पर इस वर्ष 1 लाख करोड़ रुपये खर्च करेंगे। यह दावा क्रिसिल की रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं पर राज्यों का कुल खर्च जीएसडीपी का 2 प्रतिशत हो सकता है। इसके चलते राज्य विकास कार्यों को फंड मिलने में कठिनाई हो सकती है, जिसका सीधा असर पूंजीगत व्यय पर पड़ेगा।
क्रिसिल द्वारा किए गए विश्लेषण के मुताबिक, ये 18 राज्य भारत की कुल जीडीपी में 90 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं। क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर अनुज सेठी के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2025 और 2026 में सामाजिक कल्याण पर खर्च वित्त वर्ष 2024 की तुलना में लगभग 2.3 लाख करोड़ रुपये बढ़ने की संभावना है। इसमें से लगभग 1 लाख करोड़ रुपये महिलाओं को चुनावी वादों के तहत प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के रूप में दिया जाएगा, जबकि शेष 1.3 लाख करोड़ रुपये पिछड़े वर्गों को वित्तीय/चिकित्सीय सहायता और सामाजिक सुरक्षा पेंशन देने के लिए उपयोग किए जाएंगे।
पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें लाड़ली बहना योजना जैसी नकदी योजनाओं की घोषणाएं की गई हैं। इससे डीबीटी के आवंटन में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। आगामी चुनावों को देखते हुए लाड़ली बहना योजना जैसी नकदी योजनाओं में और बढ़ोत्तरी की संभावना है, जो निगरानी का एक महत्वपूर्ण पहलू बन सकती है।
इस विश्लेषण में महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, केरल, ओडिशा, झारखंड, हरियाणा, पंजाब, बिहार, छत्तीसगढ़ और गोवा जैसे राज्यों को शामिल किया गया है, जो इस वर्ष लाड़ली बहना जैसी योजनाओं पर 1 लाख करोड़ रुपये खर्च करेंगे।
क्रिसिल के डायरेक्टर आदित्य झंवर कहते हैं कि राजस्व घाटे में बढ़ोतरी से राज्य पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) को कम कर देते हैं। जबकि 2024-25 में राज्यों का राजस्व घाटा बढ़ने से पूंजीगत व्यय केवल 6% बढ़ा है। इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है, क्योंकि पूंजीगत व्यय से राज्यों में निवेश को बढ़ावा मिलता है।