असम का चराईदेव मोईदाम यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल
घास के टीलों जैसे दिखने वाले इन टीलों चराईदेव मोईदाम को अहोम समुदाय द्वारा पवित्र माना जाता है। प्रत्येक मोईदाम एक अहोम शासक या गणमान्य व्यक्ति के विश्राम स्थल माना जाता है। यहां उनके अवशेषों के साथ-साथ मूल्यवान कलाकृतियां और खजाने संरक्षित हैं। यूनेस्को ने असम के चराईदेव मोईदाम को विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया है। असम के संस्कृति मंत्री बिमल बोरा ने पेरिस में यह प्रतिष्ठित प्रमाणपत्र प्राप्त किया। यह प्रमाणपत्र 'मोईदाम - अहोम राजवंश की माउंड बुरियल प्रणाली' के लिए दिया गया है।
असम के लिए माघ बिहू का शानदार तोहफा: बिमल बोरा
बिमल बोरा ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर कहा, 'असम के लिए एक शानदार माघ बिहू तोहफा, क्योंकि चराईदेव मोईदाम को यूनेस्को से विश्व धरोहर स्थल का प्रमाणपत्र मिला है। यह गर्व का पल है, मेरी तरफ से असम के सभी लोगों को बधाई।' उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का भी आभार व्यक्त किया, जिनके समर्थन और प्रयासों के कारण यह उपलब्धि हासिल हुई।
मुख्यमंत्री ने भी जताई खुशी
सीएम सरमा ने कहा, 'भगोली बिहू के अवसर पर यूनेस्को से शुभकामनाएं मिलीं और इससे भी अच्छा क्या हो सकता है? हमें चराईदेव मोईदाम का विश्व धरोहर सूची में शामिल होने का आधिकारिक प्रमाणपत्र मिला है। 2024 असम के लिए अच्छा साल था, और 2025 और भी बेहतर होगा।'
केंद्रीय मंत्री सरबानंद सोनोवाल की सराहना
केंद्रीय मंत्री सरबानंद सोनोवाल ने भी इस सम्मान की सराहना की। उन्होंने कहा, 'असम के लिए माघ बिहू का शानदार तोहफा है, क्योंकि चराईदेव मोईदाम को यूनेस्को से विश्व धरोहर स्थल का प्रमाणपत्र मिला है। असम के हर व्यक्ति को इस गर्व के पल पर मेरी बधाई।'
उत्तर-पूर्व का पहला सांस्कृतिक स्थल
चराईदेव मोईदाम उत्तर-पूर्व का पहला सांस्कृतिक स्थल है, जिसे यह सम्मान मिला है। इसे मान्यता देने का निर्णय जुलाई में भारत में हुई विश्व धरोहर समिति की 46वीं बैठक में लिया गया था। यह पहली बार है जब उत्तर-पूर्व का कोई स्थल सांस्कृतिक श्रेणी में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हुआ है। असम के काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान भी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। विश्व धरोहर स्थलों को सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित श्रेणियों में बांटा जाता है।
क्या है चराईदेव मोईदाम?
घास के टीलों जैसे दिखने वाले इन टीलों चराईदेव मोईदाम को अहोम समुदाय द्वारा पवित्र माना जाता है। प्रत्येक मोईदाम एक अहोम शासक या गणमान्य व्यक्ति के विश्राम स्थल माना जाता है। यहां उनके अवशेषों के साथ-साथ मूल्यवान कलाकृतियां और खजाने संरक्षित हैं।
चराईदेव मोईदाम मृतक के अवशेषों को एक भूमिगत कक्ष में दफन किया जाता है। उसके ऊपर का एक टीला या स्मारक का निर्माण किया जाता था। मोईदाम असमिया पहचान और विरासत की समृद्ध परंपरा को दर्शाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत भर में 52 स्थलों में से अहोम समुदाय के मोईदाम को विरासत स्थल के रूप में नामांकित करने के लिए चुना था। असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने इसका प्रस्ताव रखा था।
चराईदेव मोईदाम को असम का पिरामिड भी कहा जाता है। यहां 90 से अधिक टीलों का घर है। ये टीले सिर्फ दफन स्थल ही नहीं हैं, बल्कि यह असम एक विशेष सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत की धरोहर भी है।
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