चिनाब ब्रिज: सेना को पाक-चीन से एक साथ लड़ने की 5 गुना शक्ति देगा, 3 घंटे में पहुंच सकेगी सेना
6 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे ब्रिज 'चिनाब ब्रिज' का उद्घाटन किया। यह पुल जम्मू-कश्मीर की चिनाब नदी पर बना है और इंजीनियरिंग का एक अद्भुत नमूना है। यह पेरिस के एफिल टावर से भी ऊंचा है और 40 किलो तक विस्फोटक तथा 8 तीव्रता तक के भूकंप को भी सह सकता है।
इस पुल के बन जाने से भारतीय सेना की रणनीतिक ताकत कई गुना बढ़ गई है। अब सेना मात्र 3 घंटे में अग्रिम चौकियों तक पहुंच सकेगी। इससे पाकिस्तान और चीन के लिए चिंता की स्थिति बन गई है।
इतिहास: 133 साल की लंबी यात्रा
20वीं सदी की शुरुआत में कश्मीर के महाराजा प्रताप सिंह ने जम्मू और श्रीनगर के बीच रेलवे लाइन का सपना देखा था, लेकिन 1925 में उनकी मृत्यु के बाद यह काम रुक गया।
1972 में जम्मू पहुंची पहली यात्री ट्रेन
1965 की भारत-पाक युद्ध के दौरान सेना को सीमावर्ती इलाकों में पहुंचने में कठिनाई आई। तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने घाटी में रेल नेटवर्क विकसित करने की आवश्यकता महसूस की।
1972 में इस दिशा में बड़ा कदम उठाया गया। 2 अक्टूबर 1972 को पहली मालगाड़ी और 2 दिसंबर 1972 को नई दिल्ली से जम्मू के बीच पहली यात्री ट्रेन चलाई गई, जिसे ‘श्रीनगर एक्सप्रेस’ कहा गया। आज यही ट्रेन 'झेलम एक्सप्रेस' के नाम से पुणे से जम्मूतवी तक चलती है।
USBRL प्रोजेक्ट और बजट विस्तार
1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (USBRL) परियोजना की शुरुआत की। उस समय इसका बजट ₹2,500 करोड़ था, जो अब 2025 तक बढ़कर ₹42,930 करोड़ हो गया है।
चिनाब ब्रिज इस परियोजना का सबसे अहम हिस्सा है। यह पुल न सिर्फ भारत की तकनीकी क्षमता का प्रतीक है, बल्कि रणनीतिक रूप से भी चीन और पाकिस्तान के खिलाफ भारत को एक बड़ा बढ़त देता है।