ITR फाइल करते समय आय छिपाई तो 200% तक जुर्माना - जानें नियम


गलती से भी छिपाई कमाई तो देना पड़ जाएगा 200% तक जुर्माना - ITR फाइल करते वक्त जानें ये बातें

6 जुलाई को अगर कोई करदाता अपनी आय छिपाता है, आय के स्रोत नहीं बताता या गलत तरीके से टैक्स छूट का दावा करता है, तो उसे भारी जुर्माना या कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। चाहे यह गलती अनजाने में हो या जानबूझकर की गई हो, आयकर विभाग के पास गड़बड़ियों का पता लगाने के लिए एक मजबूत सिस्टम और सख्त दंड लगाने या मुकदमा चलाने का कानूनी प्रावधान मौजूद है।

चार्टर्ड अकाउंटेंट सुरेश सुराना और ClearTax में टैक्स एक्सपर्ट शेफाली मुंद्रा बताते हैं कि कानून क्या कहता है और करदाताओं को किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

कम आय दिखाने, गलत जानकारी देने या आय छिपाने पर क्या दंड लगता है?

  • कम आय दिखाना (सेक्शन 270A): अगर करदाता अपनी आय कम दिखाता है, तो उस अतिरिक्त आय पर देय टैक्स का 50% जुर्माने के रूप में देना पड़ सकता है।
  • गलत जानकारी देना (सेक्शन 270A): अगर कोई करदाता जानबूझकर गलत जानकारी देता है, जैसे फर्जी बिल या झूठे दावे करता है, तो उस आय पर देय टैक्स का 200% जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • आय छिपाना (सेक्शन 271(1)(c)): यह प्रावधान पुराने असेसमेंट वर्षों (वित्त वर्ष 2016-17 से पहले) के लिए लागू होता है। इसमें बचाए गए टैक्स का 100% से लेकर 300% तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • अस्पष्ट निवेश (सेक्शन 271AAC): अगर कोई निवेश स्पष्ट रूप से घोषित नहीं किया गया है, तो उस पर 60% टैक्स, सर्चार्ज और सेस के साथ-साथ 10% अतिरिक्त जुर्माना लगाया जाता है।
  • जानबूझकर टैक्स चोरी (सेक्शन 276C): अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर टैक्स चोरी करता है, तो उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है। इसमें तीन महीने से लेकर सात साल तक की सजा हो सकती है, खासकर तब जब चोरी की गई टैक्स राशि ₹25 लाख से अधिक हो।

मुंद्रा बताती हैं कि इसके अलावा धारा 234A, 234B और 234C के तहत भी ब्याज जुर्माना लगता है, जो कि टैक्स रिटर्न देर से भरने, टैक्स की कम अदायगी या अग्रिम कर समय पर नहीं देने के मामलों में लागू होता है।

आम तौर पर अंडर रिपोर्टिंग का पता कैसे लगाया जाता है?

अब इसकी पहचान केवल पारंपरिक ऑडिट पर निर्भर नहीं रहती। सुराना बताते हैं कि आयकर विभाग अब AIS, फॉर्म 26AS, TDS फाइलिंग, GST रिटर्न, और बैंक, म्युचुअल फंड व प्रॉपर्टी रजिस्ट्रार जैसे थर्ड पार्टी स्रोतों से मिले डेटा का विश्लेषण करता है। अगर किसी करदाता द्वारा घोषित जानकारी और इन स्रोतों से मिली जानकारी में अंतर पाया जाता है, तो मामला जांच के दायरे में आ सकता है।

इसके अलावा, विभाग को वैश्विक सूचना साझा समझौतों के तहत विदेशी संपत्तियों की जानकारी भी मिलती है, जिससे घोषित न की गई विदेशी आय और संपत्तियों का पता लगाया जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया में तकनीक अहम भूमिका निभा रही है।

मुंद्रा कहती हैं कि अब AI आधारित रिस्क मॉडल के जरिए डाटा पैटर्न को स्कैन किया जाता है। इससे ऐसी टैक्स रिटर्न्स की पहचान की जाती है जिनमें बार-बार गड़बड़ी, असामान्य व्यवहार या जानबूझकर कम आय दिखाने की कोशिश नजर आती है।

अगर गलती सुधार ली जाए तो क्या पेनल्टी से बचा जा सकता है?

हां, कुछ स्थितियों में ऐसा संभव है।

सुराना बताते हैं कि यदि करदाता धारा 139(5) के तहत संशोधित रिटर्न या धारा 139(8A) के तहत अपडेटेड रिटर्न दाखिल करता है — और यह सब आयकर विभाग द्वारा गलती पकड़े जाने से पहले होता है — तो पेनल्टी नहीं लगती, बशर्ते पूरा टैक्स और ब्याज चुका दिया गया हो।

इसके अलावा, धारा 270AA के तहत पेनल्टी और मुकदमे से छूट मिल सकती है यदि कर चुका दिया गया हो और करदाता ने अपील न की हो।

धारा 273B के तहत कोर्ट ने भी कई मामलों में ईमानदार गलती (bona fide error) या वाजिब कारण (reasonable cause) को स्वीकार किया है।

मुंद्रा के अनुसार, यदि कोई करदाता स्वेच्छा से गलती स्वीकार कर ले और जांच के दौरान सहयोग करे, तो खासतौर पर अनजाने में हुई चूक के मामलों में पेनल्टी से बचने की संभावना रहती है।

फेसलेस असेसमेंट स्कीम (धारा 144B) के तहत मामलों का निपटान पूरी तरह डिजिटल तरीके से होता है

सुराना बताते हैं कि यह सिस्टम निष्पक्षता और पारदर्शिता को बढ़ाती है। साथ ही, विभाग को कई डिजिटल स्रोतों से डेटा हासिल कर उसकी जांच कर सकता है।

मुंद्रा के अनुसार, अब AI और मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग किया जा रहा है, जो खर्च की प्रवृत्ति, पहले की टैक्स रिपोर्टिंग और थर्ड पार्टी डाटा के आधार पर टैक्स रिटर्न्स को ऑटोमैटिकली चिन्हित कर सकते हैं। यह प्रक्रिया भले ही दिखाई न दे, लेकिन यह पूरी तरह ऑटोमेटेड और कड़ी निगरानी वाली होती है।




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