ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ सकता है स्लीप एपनिया का खतरा


ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ सकता है स्लीप एपनिया का खतरा, नई स्टडी में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

क्या आपने कभी सोचा है कि ग्लोबल वार्मिंग सिर्फ हमारे पर्यावरण को ही नहीं बल्कि हमारी नींद को भी प्रभावित कर सकती है? दरअसल हाल ही में हुई एक नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है जो आपको हैरान कर देगा। जी हां, बताया गया है कि बढ़ते तापमान के कारण स्लीप एपनिया का खतरा बढ़ सकता है।

स्लीप एपनिया एक स्लीपिंग डिसऑर्डर है, जिसमें व्यक्ति सोते समय अचानक से सांस लेना बंद कर देता है। इससे नींद की गुणवत्ता खराब होती है और दिनभर थकान, चिड़चिड़ापन बना रहता है।

लंबे समय तक इलाज न मिलने पर यह स्थिति दिल, दिमाग और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।

अगर आपके परिवार में कोई खर्राटे लेते हुए अचानक चुप हो जाता है, तो यह सामान्य खर्राटे नहीं बल्कि ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) हो सकता है। यह एक ऐसी स्थिति है जहां नींद के दौरान बार-बार सांस लेने में रुकावट आती है, जिससे ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और नींद बाधित होती है।

अब एक नया शोध सामने आया है, जिसमें बताया गया है कि जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यह समस्या और गंभीर होती जा रही है। इसका मतलब है कि ग्लोबल वार्मिंग न केवल पर्यावरण को, बल्कि हमारी नींद और सेहत को भी प्रभावित कर रही है।

क्या है स्लीप एपनिया?

ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) एक नींद से जुड़ा विकार है, जिसमें गले की मांसपेशियों के ढीले पड़ने से वायुमार्ग संकुचित हो जाता है। इससे व्यक्ति की सांस रुक जाती है और शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। यह स्थिति केवल नींद ही नहीं, बल्कि दिल, मस्तिष्क और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है।




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