आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार, अब घर-घर जाकर जाति पूछेगी सरकार
जाति जनगणना पर मोदी सरकार ने बड़ा मास्टरस्ट्रोक चल दिया है। संसद से लेकर सड़क तक विपक्ष लगातार सरकार पर जातिगत असमानता को लेकर निशाना साध रहा था। 30 अप्रैल को सरकार ने एक अहम घोषणा कर इस घेरेबंदी को तोड़ दिया। अब अगली जनगणना में जाति की जानकारी ली जाएगी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट बैठक के बाद यह जानकारी दी, जिसके बाद सियासी हलचल तेज हो गई।
कांग्रेस, आरजेडी समेत विपक्षी पार्टियां इसे अपनी जीत बता रही हैं। तेजस्वी यादव ने इसे लालू प्रसाद यादव की विचारधारा की जीत बताया। वहीं बिहार में बीजेपी भी इसे अपनी बड़ी उपलब्धि मान रही है, खासतौर पर चुनाव से पहले। नीतीश कुमार ने भी इस फैसले पर पीएम मोदी का आभार जताया है।
जाति जनगणना समय की मांग क्यों है?
बीजेपी का 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा तभी सार्थक हो सकता है जब समाज के सभी वर्गों को बराबरी का अवसर मिले। जातियों के भीतर आर्थिक और सामाजिक असमानताओं की पहचान करना जरूरी है ताकि योजनाएं उन तक पहुंच सकें जिन्हें उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। यह डेटा पॉलिसी बनाने, आरक्षण की समीक्षा और संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण में अहम भूमिका निभाएगा।
बिहार की 2023 की जातिगत सर्वे रिपोर्ट से पता चला कि 84% आबादी OBC, EBC और SC समुदायों से संबंधित है। इससे जातिगत संरचना का स्पष्ट आकलन संभव हुआ है।
सियासी रणनीति और जाति जनगणना
यह कदम बीजेपी की चुनावी रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। विपक्ष इस मुद्दे को लगातार उठा रहा था, खासकर राहुल गांधी ने संसद में जाति जनगणना की जोरदार मांग की थी। कांग्रेस पहले ही साफ कर चुकी थी कि यह मुद्दा बिहार चुनाव में प्रमुख रहेगा। लेकिन सरकार ने यह घोषणा करके विपक्ष के इस मुद्दे की धार को कुंद कर दिया है।
बिहार में जेडीयू और एलजेपी (पासवान) जैसी सहयोगी पार्टियां भी जातिगत सर्वेक्षण की मांग करती रही हैं। अब बीजेपी ने यह मुद्दा खुद उठा कर न केवल सामाजिक न्याय की दिशा में कदम बढ़ाया है, बल्कि चुनावी लिहाज से भी बड़ी बढ़त बनाई है।
यह कदम बीजेपी की पहचान को एक व्यापक सामाजिक आधार पर पुनर्परिभाषित करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास माना जा रहा है। लोकसभा चुनावों में मिले वोट प्रतिशत से भी यह स्पष्ट होता है कि बीजेपी का समर्थन विभिन्न जातियों से मिल रहा है।