सिविल जज भर्ती में री-एग्जाम असंवैधानिक, तीन साल की प्रैक्टिस अनिवार्य नहीं - सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: सिविल जज भर्ती में री-एग्जाम असंवैधानिक, तीन साल की वकालत अनिवार्य नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के उस निर्णय को 23 सितंबर को निरस्त कर दिया जिसमें सिविल जज की परीक्षा के लिए तीन साल की वकालत अनिवार्य की गई थी।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के आदेश को चुनौती देने वाली अपील को स्वीकार कर लिया।
मुख्य बिंदु:
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुनः परीक्षा कराना असंवैधानिक और अव्यावहारिक है।
- 23 जून 2023 को एमपी न्यायिक सेवा नियमों में संशोधन कर तीन साल की वकालत अनिवार्य की गई थी।
- संशोधन के बाद कुछ असफल उम्मीदवारों ने कटऑफ की समीक्षा और पात्रता को लेकर मुकदमे किए।
- हाई कोर्ट ने पहले नियमों को बरकरार रखा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया।
पृष्ठभूमि:
हाई कोर्ट ने एक आदेश में यह कहा था कि जिन उम्मीदवारों के पास तीन साल की वकालत नहीं है, उन्हें बाहर कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर पिछले साल ही रोक लगा दी थी और अब उसे पूरी तरह से खारिज कर दिया गया है।
आगे क्या?
अब सिविल जज भर्ती प्रक्रिया में तीन साल की वकालत अनिवार्य नहीं होगी और पुनः परीक्षा की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, राज्य सेवा 2025 की मेंस परीक्षा इस वर्ष संभवत: नहीं हो पाएगी और अगली तारीख अक्टूबर में तय की जा सकती है।