राजधानी भोपाल में 21 और 22 सितंबर, 2024 को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में "प्री लोकमंथन: गैर-संहिताबद्ध हर्बल चिकित्सा प्रणाली - संरक्षण, प्रचार और कार्य योजना" शीर्षक से अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हो रहा है। दो दिवसीय सम्मेलन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR), प्रज्ञा प्रवाह, दत्तोपंत थेंगडी अनुसंधान संस्थान, एंथ्रोपोस इंडिया फाउंडेशन, और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय जैसे कई प्रतिष्ठित संस्थानों का संयुक्त आयोजन है। ये परंपराएँ आमतौर पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से प्रसारित होती हैं, जो स्वास्थ्य के एक समग्र दृष्टिकोण को अपनाती हैं और व्यक्तियों के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण पर विचार करती हैं। समुदायों के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में ये प्रथाएँ औपचारिक वैज्ञानिक मान्यता के बजाय अनुभव से उपजे साक्ष्य और अवलोकन पर निर्भर हैं। इनमें हर्बल उपचार, आध्यात्मिक चिकित्सा, शारीरिक हेरफेर और विशेष आहार विधियों जैसे विभिन्न तरीके शामिल हैं। सम्मेलन में प्री-लोकमंथन में कुछ रणनीतियों पर चर्चा की जाएगी ताकि हीलर्स के सामने आने वाली चुनौतियों को कम किया जा सके। कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों पर चर्चा होगी जैसे क्या हर्बल हीलर्स को उनकी योगदान और संसाधनों के लिए उचित मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष व्यापार मानकों की स्थापना करनी चाहिए या नहीं। सम्मेलन में पद्म पुरस्कार विजेता भाग ले रहे हैं। सम्मेलन का मुख्य विषय है - गैर-संहिताबद्ध हर्बल चिकित्सा प्रणालियों और उनके ग्रामीण भारत में महत्व जहाँ औपचारिक स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच सीमित है। जैव विविधता में विशिष्ट ज्ञान रखने वाले स्थानीय हीलर्स विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिए पौधों और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए अपनी तकनीकों का प्रदर्शन करेंगे। मुख्य विषयों में - जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में हर्बल चिकित्सा, जैव विविधता संरक्षण, - पारंपरिक चिकित्सा से संबंधित स्वास्थ्य संचार, वाणिज्यीकरण का प्रभाव और जैव-उपद्रव का खतरा शामिल है। सम्मेलन हर्बल चिकित्सा से उपचार करने वालों के सामने आने वाली चुनौतियों, सरकारी सहयोग की कमी और बौद्धिक संपदा अधिकारों पर भी चर्चा होगी। इस मौके पर हर्बल हीलर्स कार्यशाला विशेष आकर्षण होगा। इस दौरान पारंपरिक उपचार विधियों का उपयोग करके रोगियों का इलाज किया जायेगा। हर्बल दवाओं के बारे में ज्ञान साझा किया जायेगा। यह छात्रों, शोधकर्ताओं और आम जनता सहित प्रतिभागियों को पारंपरिक हर्बल चिकित्सा प्रणालियों का प्रत्यक्ष अनुभव करायेगा।