हमारे हेल्थ सेक्टर में बहुत-सी अनियमिताएँ है, जिनमें दवाइयों की गुणवत्ता भी एक समस्या है। लोगों में जागरूकता की कमी और सुस्त सिस्टम होने के कारण बीमार होने पर हमें कभी-कभार ऐसी दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरी नहीं उतरतीं। इन कमियों को दूर करने के लिए सरकार के साथ-साथ दवा कंपनियाँ भी कई रेग्युलेट्र्स का इस्तेमाल करती हैं। वे ऐसे प्रोफेशनल्स को हायर करती हैं, जो दवा के प्रभावों का अध्ययन करने में एक्सपर्ट होते हैं और उसके आधार पर कंपनियों को फीडबैक देते हैं। ऐसे एक्सपटर्स ही फार्माकोविजिलेंटर्स कहलाते हैं। फार्माकोविजिलेंस का सीधा-सा मतलब है, बाजार में भेजे जाने से पहले दवाइयों की जाँच पड़ताल करना। इसके अंतर्गत प्रोफेशनल्स रोगियों पर दवाओं के असर को पहचानकर उनके प्रभावों को मापते हैं और इसकी पूरी जानकारी दवा कंपनियों को देते हैं। इस जानकारी के आधार पर ही दवा कंपनियाँ अपने उत्पादों में बदलाव करती हैं ताकि उन्हें और बेहतर तथा सुरक्षित बनाया जा सके। इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए 12वीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी विषय होने जरूरी हैं। इसके बाद फार्मेसी में ग्रेजुएशन या केमिस्ट्री में बीएससी जरूरी है। इसके बाद फार्माकोविजिलेंस में डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स करना होता है। फार्माकोविजिलेंस के कोर्स में आपको फार्माकोविजिलेंस इन क्लिनिकल रिसर्च, रेगुलेशन इन फार्माकोविजिलेंस, ड्रग रिएक्शन, रिस्क मैनेजमेंट जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं। एक फार्माकोविजिलेंटर लैब में दवाइयों को टेस्ट करता है। इसके बाद चुनिंदा रोगियों के मेडिकल पास्ट का अध्ययन करके दी जाने वाली दवा के प्रभावों को ऑब्जर्व करता है। उसके सर्टिफिकेशन के बाद ही दवा को बड़े पैमाने पर बनाने का काम दवा निर्माता कंपनी द्वारा किया जाता है। इसके अलावा फार्माकोविजिलेंटर दवा के इस्तेमाल के लिए जरूरी निर्देश निर्धारित करता है। एक फार्माकोविजिलेंटर को शुरुआत में 20 से 25 हजार रुपए मासिक वेतन मिलता है जो अनुभव बढऩे के साथ तेजी से बढ़ता जाता है। फार्माकोविजिलेंटर का कोर्स कराने वाले देश के प्रमुख संस्थान हैं- इंस्टीट्यूट ऑफ क्लीनिकल रिसर्स, दिल्ली/अहमदाबाद/बैंगलुरू। कैटेलिस्ट क्लीनिकल सर्विसेज,नई दिल्ली। जहाँगीर सेंटर फॉर लर्निंग, पुणे। आईसी बायोक्लिनिकल रिसर्च, बैंगलुरू।