टायर रिमोल्डिंग प्रक्रिया दो तरह की होती है एक गर्म रिमोल्डिंग तथा दूसरी ठंडी रिमोल्डिंग । गर्म रिमोल्डिंग प्रोसेस में टायर पर कच्ची रबर चढ़ाकर मोल्ड मशीन में डालते हैं और फिर इस कच्ची रबर को गर्मी देकर पकाते हैं जबकि ठंडी रिमोल्डिंग प्रोसेस में कच्ची रबर को पहले से ही पका लिया जाता है । इस पकी हुई रबर के बेल्ट को टायर पर चढ़ाकर बोंडिंग करते हैं अर्थात् चिपकाते हैं एवं गर्म ताप पर मशीन में रखते हैं । इस गर्मी से टायर के मूल ढाँचे की क्षमता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है । इस प्रकार इन दोनों विधियों में ठंडी रिट्रीड (रिमोल्डिंग) विधि ज्यादा बेहतर होती है क्योंकि गर्म रिट्रीड में कच्ची रबर को टायर पर चढ़ाकर पकाने पर यदि गर्मी अधिक हो जाए तो टायर का केसिंग खराब हो सकता है, फलत: माइलेज कम मिलता है, लेकिन ठंडी रिट्रीड में रबर को अलग हाई हाइड्रोलिक प्रेशर देकर पकाया जाता है जिससे रबर का घनत्व ज्यादा होता है फलस्वरूप माइलेज अधिक प्राप्त होता है । ठंडी विधि पर आधारित टायर रिट्रीडिंग की इकाई स्थापना हेतु अनेक कंपनियाँ फ्रेंचाइजी भी प्रदान करती हैं जिनमें प्रमुख हैं- इंडिया रबर लिमिटेड, एम.आर.एफ. लिमिटेड आदि । यही कंपनियाँ रिट्रीडिंग हेतु कच्चा माल, मशीनरी व प्रशिक्षण भी प्रदान करती हैं । टायर रिट्रीडिंग प्लांट अलग-अलग स्तर पर लगाया जा सकता है । यह तीन लाख से लेकर 15 लाख रुपए की लागत से लगाया जा सकता है । इस प्रकार की इकाई प्रारंभ करने के लिए 600 वर्ग फीट से लेकर 3000 वर्ग फीट तक की जगह की आवश्यकता विभिन्न स्तर के प्लांट लगाने के लिए होती है । इस इकाई हेतु आप ऋण प्राप्त करने के लिए प्रधानमंत्री रोजगार योजना में साझेदारी में तथा खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड व राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति वित्त एवं विकास निगम, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम आदि में भी आवेदन कर सकते हैं ।