छात्रों में परीक्षा के तनाव का बड़ा कारण देश के कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स का डिफिकल्टी लेवल भी है। शैक्षणिक संस्थानों में परीक्षा देने वाले छात्रों की तुलना में बहुत कम सीट्स हैं। वहीं नौकरियों के अवसर भी सीमित हैं। देश की छह बड़ी परीक्षाओं के डिफिकल्टी लेवल का एनालिसिस बताता है कि यूपीएससी सीएसई और आईआईटी एंट्रेंस जेईई एडवांस्ड विश्व की मुश्किल परीक्षाओं में शामिल हैं।
सीएसई की सफलता दर 1% और एडवांस्ड की सक्सेस रेट केवल 6% है। आईआईटी की दौड़, जेईई मेन के आठ लाख छात्रों के बीच होती है। जेईई मेन क्वालिफाइंग एग्जाम होता है। इसके बाद होने वाले जेईई एडवांस्ड के लिए औसतन 30-35 हजार छात्रों को ही हर साल काउंसलिंग कॉल किया जाता है। उधर, यूपीएससी की साल 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार सिविल सर्विसेज के 836 पदों के लिए 10.40 लाख आवेदन आए थे और 833 कैंडिडेट्स को रिकमेंड किया गया था।
परीक्षा देने वाले 20 लाख कैंडिडेट्स जबकि मेडिकल यूजी सीटें 1 लाख देश के सबसे बड़े मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम नीट यूजी में सबसे कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है। साल 2023 में 20.38 लाख छात्रों ने मेडिकल एंट्रेंस दिया था और 11.45 लाख स्टूडेंट्स को काउंसलिंग में भाग लेने के लिए एलिजिबल किया गया था। इनमें से मात्र एक लाख छात्रों को ही मेडिकल कॉलेजेज में सीट मिली। यानी, नीट क्वालिफाय करने वाले भले ही 51 फीसदी रहे हों, लेकिन परीक्षा देने वाले छात्रों में से मात्र पांच प्रतिशत स्टूडेंट्स ही एमबीबीएस की सीट हासिल कर पाए।
गेट का अधिकतम रिजल्ट 23%
आईआईटी की पीजी
स्ट्रीम में दाखिले के लिए होने वाले ग्रेजुएट एप्टीट्यूट टेस्ट इन इंजीनियरिंग
(गेट) को क्वालिफाय करना भी मुश्किल है। इसका अधिकतम रिजल्ट 23 फीसदी रहता है।
वहीं क्लैट की कट ऑफ 72 से 127 के बीच होती है। इसी प्रकार एसएससी
सीजीएल-प्रीलिम्स का रिजल्ट इस साल मात्र आठ फीसदी ही रहा। इससे इन परीक्षाओं के
मुश्किल स्तर का अंदाज लगाया जा सकता है।