बेमिसाल: 14 दिन बाद भी लैंडर और रोवर को बचाने की होगी कवायद चांद पर भारत की चहलकदमी, प्रज्ञान ने बनाए अशोक चिह्न

14 दिन बाद सो जाएगा लैंडर व रोवर, 28 वें दिन होगी जगाने की कोशिश

बेंगलूरु. चंद्रमा पर लैंडर विक्रम के उतरने के बाद चांद की सतह पर रोवर प्रज्ञान की चहलकदमी शुरू हो गई है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि लैंडर विक्रम के रैंप के जरिए रोवर प्रज्ञान उतरा और भारत ने चांद की सतह पर सैर की। इसरो अधिकारियों के मुताबिक 26 किग्रा वजनी रोवर प्रज्ञान के पहियों में भारत का राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो के चिह्न उभरे हुए हैं। रोवर के चांद की सतह पर चहलकदमी से चांद की सतह पर इसके चिह्न भी अंकित हो रहे हैं। रोवर लगभग एक सेंटीमीटर प्रति सेकेंड की गति से चल रहा है।

इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने कहा कि ‘14 दिन बाद जब चंद्रमा पर रात होगी तब लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान स्लीप मोड में चले जाएंगे। अगले 14 दिनों की अंधेरी रात में चंद्रमा के सतह का तापमान माइनस 180 से माइनस 230 डिग्री तक चला जाएगा। इन परिस्थितियों में लैंडर व रोवर को बचाना चुनौतीपूर्ण है। हमने इसके लिए स्लीप मेकेनिकज्म लगाए हैं।

रात के बाद जब फिर दक्षिणी ध्रुव के पास सूर्योदय होगा (लगभग 28 दिन बाद) तो हम लैंडर और रोवर को फिर सक्रिय करने का प्रयास करेंगे।’ हालांकि, उन्होंने कहा कि यह कहना मुश्किल है कि वे फिर से सक्रिय हो पाएंगे या नहीं। अगर हमें सफलता मिलती है तो मिशन अगले 14 दिनों के लिए फर आगे बढ़ जाएगा। अगर हम दोबारा लैंडर और रोवर को सक्रिय नहीं कर पाए तो मिशन 14 दिन का ही रह जाएगा।

इस बीच इसरो ने कहा कि, चंद्रमा की सतह पर प्रयोग शुरू करने से पहले लैंडर और रोवर के उपकरणों के एक-एक कल चालू किया जा रहा है। लैंडर के तीनों पे-लोड इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सेस्मिक एक्टिविटी (आइएलएसए), रेडियो ऑटोनॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फीयर एंड एटमॉस्फीयर (राम्भा), चंद्र सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंड (चास्टे) चालू कर दिए गए। वहीं, प्रोपल्शन मॉड्यूल का पे-लोड शेप 20 अगस्त को ही चालू कर दिया गया था। सभी गतिविधियां तय समय के अनुसार चल रही हैं। मिशन बिल्कुल सामान्य है और आशा के अनुरूप आगे बढ़ रहा है।

विक्रम-प्रज्ञान स्वस्थ, लेकिन खतरे बरकरार

इसरो चीफ सोमनाथ ने कहा कि लैंडर और रोवर दोनों स्वस्थ हैं और ठीक से काम कर रहे हैं। उन्होंने चांद पर लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान के खतरे का जिक्र करते हुए कहा कि कोई वातावरण नहीं होने के कारण अंतरिक्ष पिंड कहीं से भी आकर चांद से टकराते रहते हैं। तापमान भी एक समस्या है, जिसका असर संचार प्रणाली पर हो सकता है। यदि कोई उल्का पिंड लैंडर या रोवर से टकराएगा तो वह उन्हें खत्म कर सकता है।

धरती पर भी प्रति घंटे लाखों पिंड आते रहते हैं, पर हमारा वातावरण उन्हें जला देता है, इसलिए हम महसूस नहीं कर पाते।

अब नई...

आप कह सकते हैं कि उम्मीद से भी अधिक सफल रहे हैं।

लैंडिंग के दौरान कभी ऐसा लगा कि, कुछ गलत हो रहा है?

विश्वास था कि, हम सॉफ्ट लैंड होंगे। बस यही देख रहे थे कि हर पड़ाव को हम सही ढंग से पार कर रहे हैं या नहीं? लगातार जांच चल रही थी।

आखिरी 15 मिनट के दौरान मन में क्या चल रहा था?

हम जो भी कर सकते थे, कर दिया था। आखिरी 15 मिनट में हमारे हाथ में कुछ नहीं था। बस यही कामना कर रहे थे कि सब सही हो और मिशन कामयाब हो। सभी प्रार्थना कर रहे थे कि सफल हों।

पिछले 40 दिन कैसे गुजरे?

पिछले 40 दिन में हर एक ऑपरेशन के लिए कड़ी मेहनत की है। इसमें काफी तकनीकी पहलू हैं जिसे बताना मुश्किल है। लेकिन, हर एक योजना अत्यंत सावधानी और बारीकी से तैयार करना और उसे अंजाम तक पहुंचाना था।

गलती की गुंजाइश नहीं रखी। पूरी टीम ने इसमें काफी मेहनत की।

मिशन की कामयाबी पर काफी राहत मिली होगी?

हमने काफी हार्ड वर्क किया था। सफल होने पर हमें काफी खुशी मिली। यह हमारे देश के लिए गौरव का विषय है।

अब अगर हम दूसरे अंतरग्रहीय मिशन की तैयारी करें तो नजरिया बदलेगा?

निश्चित तौर पर नजरिया बदलेगा। क्योंकि, चंद्रयान-1 या मंगलयान मिशन के दौरान हम केवल चांद या मंगल की कक्षा तक पहुंचना चाहते थे। लेकिन, उसके बाद हमने चंद्रयान-2 मिशन में चांद पर उतरने की कोशिश की।

पूरी कामयाबी चंद्रयान-3 में मिली है। हमने लैंडिंग तकनीक हासिल की है। तो अब जब दूसरे मिशन की योजना तैयार होगी तो हम यह सोचेंगे कि, नया क्या करें? मिशन का उद्देश्य और स्वरूप भी बदलेगा। नई सोच आएगी।

100 किमी दूर कक्षा में स्थापित चंद्रयान-2 का आर्बिटर

प्रज्ञान से संदेश लेकर विक्रम सीधा धरती पर इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आइडीएसएन) को भेजेगा।

विक्रम चन्द्रयान-2 के ऑर्बिटर को संदेश देगा, जो उसे आइडीएसएन को प्रेषित करेगा।

राष्ट्रीय चिह्न

प्रज्ञान डाटा एकत्रित करेगा... रोवर प्रज्ञान चंद्रमा की सतह पर चहलकदमी कर उसे स्केन करेगा। प्राप्त जानकारी धरती पर भेजे जाएंगे, जहां से उसे मार्ग तय करने का निर्देश मिलेगा।